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हिताहिताध्यायः।
(७४१)
..... नाम्ना नारीति सामान्यं भगिनीभार्ययोरिह । .. .
- एका सेव्या न सेव्यैका, तथा चौदनमांसयोः ॥ इति तथा च पूर्वाचार्याणां लौकिकसामयिकाद्यशेषविशेषज्ञमनुष्याणां प्राप्तिपरिहारलक्षणोपेतकर्तव्यसिद्धिरेवं प्रसिद्धा । ततोन्यथा सम्मतं चेति, तत्कथामिति चेन्नानाविधिना धान्यदलादिमूलफलपत्रपुष्पावशेषस्थावरद्रव्याणि देवतार्चनयोग्यानि ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यादिविशिष्टोपभोग्यानि विधिरूपास्पृश्यरजःशुक्लसंभूतदोषधातुमलमूत्रशरीरविरहितानि विशुद्धान्यविरुद्धानि विगतपापानि निर्दोषाणि निरुपद्रवाणि निर्मलानि निरुपमानि सुगंधीनि सुरूपाणि सुक्षेत्रजान्येवं. विधान्यपि भैषजानि मांसानीति प्रतिपादयेत् । सत्यधर्मपरो वैद्यस्तरकारे तद्विपि च स्यात् [?] । एवमुक्तक्रमेण स्थावरद्रव्याण्यीप मांसान्येव प्रतिपादयतो वैद्यस्य प्रत्यक्षविरोधस्ववचनविरोधागमविरोधलोकविरोधाद्यशेषविरोधदोषपाषाणवृष्टिरनिष्टोत्पातवृष्टिरिव तस्य मस्तके निशितनिस्त्रिंशधारेव पतति । तद्भयान्नैवं मांसमित्युच्यते । किंतु जीवशरीरव्याघातनिमित्तत्वात्स्थावरात्मकभेषजान्यपि पापनिमित्तान्येव कथं योयुज्यते इति चेत् । सुष्ठूक्तं जीवधातनिमित्तं
-- नाम से नारी [ स्त्री ] इस प्रकार की सामान्य संज्ञा से युक्त होनेपर भी भगिनी और भार्या में एक सेव्या है । दूसरी सेव्य नहीं है । इसी प्रकार अन्न व मांस दोनों जीवशरीरसामान्य होनेपर भी एक सेव्य है और एक सेव्य नहीं है। 3. इसी प्रकार लौकिक और पारमार्थिक विषयों को जाननेवाले विशेषज्ञ पूर्वाचार्योने लोक में हिताहितप्राप्तिपरिहाररूपी कर्तव्यसिद्धि का प्रतिपादन किया है । यदि यह बात न हो तो जिस प्रकार धान्य, वैदल, मूल, फल पुष्प पत्रादिक स्थाधरद्रव्योंको देवतापूजन के योग्य, ब्राम्हण, क्षत्रिय वैश्यादिक, विशिष्ट पुरुषों के उपभोग के लिए योग्य, विधिरूप अस्पृश्य. रज व शुक्र से उत्पन्न, धातुमल मूत्रादिशरीरदोष से रहित, विशुद्ध, अविरुद्ध, पापरहित, निर्दोष, निर्मल, निरुपम, सुंगंधी, सुरूप, सुक्षेत्रज, आदि रूपसे कहा है मांस को भी उसी प्रकार कहना चाहिये। सत्यधर्मनिष्ठ वैद्य उस प्रकार कह नहीं सकता है । इस प्रकार स्थावर द्रव्योंको मांस के नाम से कहनेवाले वैद्यके लिए प्रत्यक्ष विरोध दोष आजावेगा.। साथ ही स्ववचनविरोध आगमविरोध, लोकविरोधादि समस्तविरोधदोषरूपी अनिष्टपाषाणवृष्टि प्रलयवृष्टि के समान उस के मस्तकपर तीक्ष्ण शस्त्रधाराके समान पडते हैं। उस भय से मांस को इस प्रकार नहीं है, ऐसा कथन किया जाता है ।
परंतु जीवशरीरव्याघातनिमित्त होने से स्थावरात्मक पापनिमित्तऔषधी का उपयोग आप किस प्रकार करते हैं ? इस प्रकार पूछनेपर आचार्य उत्तर देते हैं कि ठीक ही कहा है कि जीवों के घात के लिये किये जानेवाला कार्य पापहेतु है इस
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