Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

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Page 822
________________ हिंताहिताध्यायः। ( ७२९ ) मांसमत्स्यगुडमाषमोदकैः कुष्ठमावहति सेवितं पयः शाकजांबवसुरासवैश्व त-न्मारयत्यबुधमाशु सर्पवत् ॥ अथवा अलौकिकमविशिष्ट महृद्यं शास्त्रवर्जितं मांसक्षीरं न सममश्नीयात् । कोहि नाम नरस्सुखीति । अपि चैवं ब्रह्मोद्यं लोकस्याहारविधानमेवमुक्तं । सर्वप्राणिनामाहारविधानमेवमुक्तं हि । कुयोनिजानां मधुमघमांसकदन्नमन्नं च तथा परेषां । कल्याणकं चक्रधरस्य भाज्यं, स्वर्गेऽमृतं भोगमहिस्थितानां ॥ पितृसंतर्पणार्थमपि न भवत्येव मांस । कथं ? सायुज्यमायाति परेण पुंसा योगस्थितास्तपि ततः प्रबद्धाः । कचिदिवं दिव्यमनुष्यभावं न तत्र मासादिकदनभुक्तिः । इति । तथा मांस भेषजमपि न भवत्येव, द्रव्यसंग्रहविज्ञानीयाध्याये मांसस्वापाठात् । मांस, मछली, गुड उडद से बनी हुई मिठाई के साथ दूध का सेवन करें तो वह कुष्ठ रोग को उत्पन्न करता है । शाक जंबू फल से बने हुए मदिरा के साथ दूध का उपयोग करे तो उस मूर्ख को वह शीघ्र ही मार डालता है। अथवा लोकबाह्य, अविशिष्ट, भीभत्स, शास्त्रवर्जित ऐसे मांस को दूध के साथ नहीं खाना चाहिए । उससे मनुष्य सुखी कभी नहीं हो सकता है । इस प्रकार ब्रह्म ऋषि द्वारा कथित लोक के आहार का विधान कहा गया । सर्व प्राणियों का आहार विधान इस प्रकार कहा गया है। कुयोनिज [ नीच जात्युत्पन्न ] जीवों को मधु, मद्य, मांस व खराब अन्न भोजन है। अन्य प्राणियों को अन्न भोजन है । चक्रवर्ति को कल्याणकान भोजन है । एवं स्वर्ग व भोगभूमिस्थित जीवों को अमृताहार है । पितृसंतर्पण के लिए भी मांस का उपयोग नहीं हो सकता है। क्या कारण है ? इस के उत्तर में ग्रंथकार कहते हैं। चे योगस्थित ज्ञानी पुरुष उत्तम स्थान में जाकर समता को प्राप्त कर लेते हैं। उन में कोई स्वर्ग में जाकर जन्म लेते हैं। और कोई पवित्र मानवीय देह को प्राप्त कर लेते हैं। वहां पर मांसादि कदन्नों को भक्षण करने का विधान नहीं है। - इसी प्रकार मांस औषध भी नहीं हो सकता है । क्यों कि औषधि के लिए उपयुक्त व्यसंग्रह विज्ञायक अध्याय में मांस का अहंण नहीं किया गया है । अथवा ९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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