________________
(६२२)
कल्याणकारके
इत्यादि के अनुसार पूर्वकथित स्नेहनामक बस्ति [अनुवासन बस्ति ] का प्रयोग पूर्णरूप से आयुर्वेदशास्त्रज्ञ वैध करें ॥ १२४ ॥ -- अनुवासनबस्तिकी मात्रा व खालीपेट में बस्तिका निषेध.
या मात्रा प्रथितनिरूहसद्रवेषु । स्नेहानामपि च तदर्धमुक्तमार्यैः ॥ नाभुक्तं नरमनुवासयेच्च रिक्त । कोष्ठे तदुपरि निपात्य दोषकृत्स्यात् ॥ १२५ ।। तस्मात्तं तदुचितमाशु भोजयित्वा । सार्दोद्यत्करमनुवासयेद्यथावत् ॥ अज्ञानादधिकविदग्धभक्तयुक्तं ।
साक्षात्तज्वरयति तत्तदेव योज्यम् ॥ १२६ ॥ भावार्थ:--निरूहबस्ति के लिये द्रव का जो प्रमाण बतलाया गया है उस से अर्धप्रमाण स्नेह बस्ति [ अनुवासन ] की मात्रा है। जिसने भोजन नहीं किया हो उसे कभी भी ( खाली पेट में ) अनुवासन बस्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिये । यदि खाली पेट में बस्ति का प्रयोग कर देवे तो वह ऊपर की तरफ जाकर दोष उत्पन्न करता है । इसलिये, रोगी को शीघ्र योग्य पथ्यभोजन करा कर, जब हाथ गीला ही होवे तभी अनुवासनबस्ति का यथावत प्रयोग करना चाहिये । यदि अज्ञान से विदग्ध आहार खाये हुए रोगी को बरितका प्रयोग कर दे तो वह ज्वर को उत्पन्न करता है। इसलिए योग्य आहार खिलाकर बस्ति का प्रयोग करें ॥ १२५ ॥ १२६ ॥
स्निग्धाहारी को अनुवासनबस्तिका निषेध.
मुस्निग्धं बहुतरमन्त्रमाहतस्य । प्रग्यात मिषगनुवासयेन चव ॥ मूछी तृइमदपरितापहेतुमक्तः ।
स्नेहोयं द्विविधानतो नियुक्तः ॥ १२७ ।। भावार्थः --- जिसने अतिस्निग्ध अन्न को ग्वालिया हो उसे वैध अनुवासन बस्तिका प्रयोग कभी न करें। क्यों कि दोनों तरफ (मुग्य, गदामार्ग से) से प्रयोग किया हुआ स्नेह, मम, प्यास, मद व संताप के लिए कारण होता है अर्थात् उससे मूच्छी आदि उपद्रव उत्पन्न होते हैं ॥ १२७.।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org