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कल्याणकारके
भावार्थ:-जिसका शरीर प्रबल मल से अशुद्ध हो, और प्रबल वातसे पीडित हो तो उसे दोषोंको शमन करनेमें सर्वथा उपयुक्त ऐसे अनुवासन बस्तिका प्रयोग रात दिन हमेशा करना चाहिये ॥ १३१ ।।
अनुवासनवस्ति की विधि. . स्वभ्यक्तं सुखसलिलैरिहाभिषिक्तं । शास्त्रोक्तक्रमविहितं तु भोजयित्वा ।। सिधृत्याज्वलशतपुष्पचूर्णयुक्तम् । संयुक्त्या विधिविहितानवासन तत् ॥ १३२ ॥ स्नेहोद्यत्पाणिहितबस्तियुक्तमयं । हात्तानोचलितसुखप्रसारितांगम् ॥ वीर्यातिप्रसरणकारणं करांघ्रिस्फिग्देशान्करतलताडनानि युक्तान् ॥ १३३ ॥ त्रीन्वारं शयनमिहोत्क्षिपेक्षिपेच्च । स्नेहस्य प्रसरणसंचलार्थमित्थम् ।। ब्रूयात्तं क्षणशतमात्रकं तु पश्चात् । तिष्ठेति त्वमिह मुदक्षिणोरुपावें ॥ १३४ ॥ . इत्येव सुविहितसक्रियानियुक्तः। न्यस्तांगस्त्वमिह सुख मलप्रवृत्यै ।। तिष्ठति प्रतिपदमातुर यथावत् ।
तं ब्रूयान्मलगमने यथा कथंचित् ॥ १३५ ।। भावार्थः - अनुवासन करने योग्य मनुष्य को सबसे पहिले ठीक २ स्नेहाभ्यंग करा के गरम पानी से स्नान कराना चाहिये [जिस से पसीना निकल आवे ] पश्चात् शास्त्रोक्त क्रम से भोजन कराकर, सेंधानमक व सोंफके चूर्ण से युक्त, अनुवासनबस्ति का प्रयोग विधिप्रकार, युक्ति से करना चाहिये । स्नेहबस्ति के प्रयोग करने के पश्चात् उस मनुष्य को ( जिस को स्नेहबस्ति-अनुवासनबस्तिका प्रयोग किया है) [ जितने समय में सौ गिने उतने समय तक ] सुखपूर्वक अंगोंको पसार कर चित सुलावें । ऐसा करने से बस्तिगत स्नेह का प्रभाव सब शरीर में पहुंच जाता है। इस के पश्चात् हाथ व पैर के तलवे और फिग ( चूतड ) प्रदेश में ( धीरे २ ) हाथ से
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