________________
रिष्टाधिकारः।
(७०९)
१ भावार्थ:-जो मनुष्य अलका ( कुटिलकेशे ) व चंद्रसूर्य के तेज प्रकाश को भी नहीं देखता हो ( जिसे नहीं दिखता हो ) एवं समक्ष में उन के प्रतिबिंब को अन्यथा रूप से देखता हो तो समझना चाहिये कि उस का निवास केवल एक महीने का है ॥२०॥
पाक्षिकमरणचिन्ह. यदा परस्मिन्निह दृष्टिमण्डले स्वयं स्वरूपं न च पश्यति स्फुटं। प्रदीप्तगंधं च न वेत्ति यस्तत त्रिपंचरात्रेषु नरो न विद्यते ॥ २१ ॥
भावार्थ:-जिस समय जिस मनुष्य का रूप दूसरों के दृष्टिमण्डल में अन्छ.तरह नहीं दिखता हो एवं जिसे तेज वासका भी अनुभव नहीं होता हो, वह तीन वार पांच दिन से अर्थात् १५ दिनसे अधिक नहीं जी सकता है ॥२१॥
द्वादशरात्रिकमरणचिन्ह. यदा शरीर शवगंधतां वदैद कारणादेव वदंति वेदना । . प्रबुद्ध वा स्वप्नतयैव यो नरैः स जीवति द्वादशरात्रमेव वा ॥ २२ ।।
भावार्थ:-जब जो मनुष्य अपने शरीर में मुर्दे के वास का अनुभव करता हो, कारण के बिना ही शरीर में पीडा बतलाता हो जागते हुए भी स्वप्नसे युक्त के समान मनुष्यों को दिख पडता हो तब से वह बारह दिन तक ही जायेगा ॥ २२ ॥
सप्तरानिकमरणचिन्ह... यदात्यचिन्होत्यबलोऽसितो भवेद्यदारविंदं समवक्त्रमण्डलम् । यदा कपाले बलकेंद्रगोपकस्स एव जीवेदिह सप्तरात्रिकं ॥ २३ ॥
भावार्थ:-जव शरीर · अकस्मात् ही निर्बल व काला पड जाता हो, सर्व साधारण के समान रहनेवाला [सामन्यरूपयुक्त ] मुख मंडल ( अकस्मात् ) कमल के समान गोल व मनोहर हो जाये, कपोल में इंद्रगोप के समान चिन्ह दिखाई दे तो समझना चाहिये कि वह सात दिन तक ही जीयेगा ॥ २३ ॥ .:: ...... त्रैरात्रिकमरणचिन्ह. . ...
.. तुदं शरीरे प्रतिपीडयत्यप्यनूनमर्माणि च मारुतो यदा। तथोग्रदुश्चिकविद्धवनरस्सदैव दुःखी त्रिदिनं स जीवति ॥ २४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org