________________
१
भावार्थ:- - उत्तम बीज ( सुवर्ण) के बराबर ताम्र ( ताम्बा ) लेकर उस का पत्र तैयार करके, उसपर उससे द्विगुण सुवर्णमाक्षिक के कल्क से लेप करें । पश्चात् उस ताम्रपत्र के अंदर के भाग में बीज को रखें और ( ताम्रपत्र के ) बाहर के भाग में गंधक के कल्क से खूब [ गाढा ] टेप करें । फिर उस [ ताम्रपत्र ] को गोलाकार के रूप में मोडकर गोली के समान बनावे और उसे वज्रभूषा के अंदर रखकर उस के मुख को बंद कर के ख़ैर के कोलसे से अच्छी तरह घमाना चाहिये । इस के बाद उस वज्रभूषा को फोडकर देखने पर उस के अंदर एक गोल आकार की गोली देखने को मिलेगी । उस गोली को पुनः बहुतवार यत्नपूर्वक उक्त क्रम से संस्कार कर के रंजन करना चाहिये । इस प्रकर कई बार संस्कार कर के आखिर में उस गोली को फोडकर बारीक चूर्ण कर के इसे क्रमशः आदि, मध्य व अंत में डालते हुए पारा में मिलाना चाहिये । अर्थात् इस को क्रमशः थोडा २ डालते हुए परा का जारण करना चाहिये ॥ १९- २०-२१ ॥
८८
सरसायन सिध्यधिकारः |
अभ्यंतरे स्थिर सुबीजवरं प्रकृत्य । बाधे कुरु मबलगंधककल्कलेपम् ॥ १९ ॥ सद्वृतमुत्तमगुणं प्रविधाय वज्र- 1 मूषागतं वदनमस्य विधाय धीमान् ॥ सम्यग्धमेत्खदिरसद्धमरैस्ततस्तं । निर्भेद्य शुद्धगुलिकामवलोक्य यत्नात् ॥ २० ॥ भूयस्तथैव बहुशः परिरंजयेत्तां । पूर्वप्रणीत गुलिकामध भिद्य सूक्ष्मां ॥
चूर्णीकृतां रसवरे स च देयमादौ । मध्येऽवसानसमयेऽपि यथाक्रमेण ॥ २१ ॥
Jain Education International
रस प्रयोग विधि.
माकं पटलिकं पटुवज्रकाख्यं । संपेषयेल्लवणटणकषणेन ॥ सार्धे पुनर्नवरसेन निबंधवेणी - | नाद्यानिधाय विपचेद्वरकांजिकायाम् ॥ २२ ॥ नाळे प्रोध सकलद्रवतां गतां त
( ६७५ )
दहेत् " इति पाठांतरं २ " र " इति पाठांतर ३ रुक्षां इति पाठांतर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org