Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

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Page 797
________________ (७०४ ) 'कल्याणकारके अथ परिशिष्टरिष्टाध्यायः मंगलाचरण व प्रतिज्ञा. अरिष्टनेमिं परमेष्ठिनं जिनं प्रणम्य भक्त्या प्रविनष्टकल्मष विशिष्टसंदिष्ट सुरिष्टलक्षणं प्रवक्ष्यते स्वस्थजनेषु भाषितम् ॥ १॥ भावार्थ::- जन्मजरामरणारहित, परमेष्ठी, सर्वकर्मों से रहित श्री नेमिनाथ तीर्थकर को भक्ति से नमस्कार कर स्वस्थ मनुष्यों में पाये जानेवाले एवं ( पूर्वाचार्यो द्वारा ) विशेष रूप से प्रतिपादित रिष्ट [ मरणसूचक चिन्ह ] लक्षणों का निरूपण किया जायगा ॥ १ ॥ Jain Education International रिष्टवर्णनादेश. रहस्यमेतत्परमागमागतं महामुनीनां परमार्थवेदिनां । निगद्यते रिष्टमिदं सुभावनापरात्मनामेव न मोहितात्मनाम् ॥२॥ भावार्थ:- यह रहस्य परमार्थ तत्व को जाननेवाले गणधर आदि तपोधनों के द्वारा निर्मित परमागम की परंपरा से आया हुआ है । और इन रिष्टों का प्रतिपादन सदा शुभ भावना में तत्पर सज्जनों के लिये किया गया है। न कि सांसारिकमोह में पडे हुए प्राणियों के लिये । क्यों कि उन के लिये न रिष्टों का दर्शन ही हो सकता है, और न उपयोग ही हो सकता है ॥ २ ॥ मृतिर्मृतेर्लक्षणमायुषक्षयं मृतेरुपायाहरले कथंचन । विमोहितानां मरणं महद्भयं ब्रवीमि चेत्तद्यतः कस्य नी भवेत् ॥ ३ ॥ भावार्थ:- आयु के नाश होकर इस आत्मा के गत्यंतर की जो प्राप्ति होती है उसे मरण कहते हैं । विषादिक में भी मरण के कारण विद्यमान होने से वह भी किसी अंश में मरण ही कहलाते हैं । मोहनीय कर्म से पीडित पुरुषों को मरण का भय अत्यधिक मालुम होता है । इसलिये आगे उसी बात को कहेंगे जिस से उस का भय न हो ॥ ३ ॥ वृद्धों में सदा मरणभय. अथ प्रयत्नादिह रिष्टलक्षणं सुभावितानां प्रवदे महात्मनां । कटकटीभूतवयोमकेश्वपि प्रतीत मृत्योर्भयमेव सर्वदा ॥ ४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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