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· कल्याणकारके
के साथ घृतदुग्ध मिश्रित अन्नका भोजन करें तो वह मनुष्य वज्रके समान मजबूत शरीरको धारण करता है एवं यौवन के मद से युक्त बल को धारण करके विद्याधरों के साथ भी गर्व करते हुए हजारों वर्ष जीता है ॥ ३५ ॥
मृत्तिकाकल्प. या चैवं भुवि मृत्तिका प्रतिदिनं संभक्ष्यते पक्षिभिस्तां क्षीरेण घृतेन चक्षुरससंयुक्तेन संभक्षयेत् ॥
अक्षुण्णं बलमप्यवार्यमधिकं वीर्य च नीरोगतां । ...वांछभब्दसहस्रमायुएनवद्यात्मीयवेषी नरः ॥ ३४ ॥
भावार्थ:-जिस मट्टी को लोक में प्रतिदिन पक्षियां खाती हैं ( उस को संग्रह कर ) घृत, दूध इक्षुरस के साथ मिलाकर, उसे निर्दोषवेष को धारण करते हुए मनुष्य खावं तो वह कभी किसी के द्वारा नाश नहीं होनेवाले बल, अप्रतिहतवीर्य और आरोग्य को प्राप्त क ता है । और हजारों वर्ष की आयु को भी प्राप्त करता है ॥३६॥
गोश्रंग्यादि कल्प. गोश्रंगीगिरिश्रृंगजामपि गृहीत्वाशोष्य संचूर्णिता । गव्यक्षीरघृतैर्विपाच्य गुडसमिश्रः प्रभक्ष्य क्रमात् ॥ पश्चात क्षीरघृताशनोऽक्षयबलं प्राप्नोति मयस्स्वयं । निर्योऽप्यतिवीर्यमूर्जितगुणः साक्षाद्भवेनिश्चयः ।। ३७ ॥ भावार्थ:--- गोश्रमी [ बवूर ] व मिरि श्रृंगजा ( शिलाजीत ) को लेकर अच्छी तरह सुखाकर चूर्ण करें। फिर उस चूर्ण को गोक्षीर गोवृत व गुड़ मिलाकर यथाविधि पकावे अर्थात् अवलेह तैयार करें । फिर उसे क्रम खावें। बाद में दूध व घृत से युक्त अन्न का भोजन करें। इस से मनुष्य अक्षय बल को प्राप्त करता है । वीर्यरहित
होनेपर भी अत्यंत वीर्य को प्राप्त करता है। एवं निश्चय ही उत्तमोत्तम गुणों से युक्त . होता है ।। ३७ ॥
एरंडादिकल्प. एरण्डामृत हस्तिकाणविलसद्वीरांघ्रिपैः पाचित । भक्ष्यान् प्रोक्तविधानतः प्रतिदिनं संभक्ष्य मंक्ष्वक्षयं ॥ वार्य प्राज्यबलं विलासविलसत् सद्यौवनं प्राप्य तत् ।। पशादायुरवायति त्रिशनमब्दानां निरुद्धामयः ॥ ३८ ॥
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