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कल्पाधिकारः ।
( १९७ )
भावार्थ :-- एरंड की जड, गिलोय, गजकर्णी, भिलावा, इनके द्वारा साधित भक्ष्यों ( पाक अवलेह आदि ) को पूर्वोक्त विधान से प्रतिदिन भक्षण करे तो शीघ्र ही अक्षय वीर्य, विशिष्टशक्ति, मनोहर यौवन को प्राप्तकर सम्पूर्ण रोगों से रहित होकर तीन सौ वर्ष की आयु को भी प्राप्त करता है ॥ ३८ ॥
नाग्यादिकल्प.
भावार्थ:- नागी ( बंध्याकर्कोटक ) खरकर्णिका [ तालमखाना ] कूडा चिरायता, महानिम्त्र [ वकायन ] इन को इन के जड के साथ चूर्ण घर के घृत के साथ मिलाकर चाटने से अनेक उपद्रवों से युक्त बडे २ रोग, उग्रविषों को भी जीतकर अद्भुत यौवन सहित हजार वर्ष जीता है ॥ ३९ ॥
नागी सत्वरकर्णिका कुटजभूनिम्बोरुनिम्बासमू । लं संचूर्ण्य घृतेन मिश्रितमिदं लीडा सदा निर्मलः ॥ रोगेंद्रानखिलानुपद्रवयुतान् जित्वा विषाण्यप्यशे- | षाण्यत्यद्भुतयौवनस्थितवयो जीवेत्सहस्रं नरः ॥ ३९ ॥
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भावार्थ :-- यहांसे आगे, क्षार, त्रिफला, चित्रकगण, सफेद असगंध, गिलोय, पुनर्नवा आदि विशिष्ट व श्रेष्ठ औषधि जो कि भयंकर रोगों को नाश करने में समर्थ हैं, असदृश हैं, जिन के फल भी प्रत्यक्ष देखे गये हैं उन के द्वारा कहे गये श्रेष्ठ क्रियाविशेषों को अर्थात् इन औषधियों के कल्पों को प्रतिपादन करेंगे ॥ ४० ॥
क्षारकल्पविधान
क्षारकल्प.
अत्रैवात सत्क्रियाच विधिना सम्यग्विधास्ये मनाक् 1 क्षारैः सत्त्रिफलासुचित्रकगणैः श्वेताश्वगंधामृता - ॥ वर्षाभूः प्रमुखेर्विशेषविहितैस्स द्वेषजैर्भाषितं । प्रोद्यव्याधिविनाशनैरसदृशैर्दृष्टैस्ससम्यक्फलैः ॥ ४० ॥
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क्षारैरिथुर के क्षुतालितिल जापामार्गनिर्गुडिका । रंभाम्बुजचित्रचित्रकविळख्यातो रुमृष्टोद्भवैः ॥
१ स्वरकर्णिका इति पाठातरं
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