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कल्याणकारके
__ भावार्थ- इस प्रकार यथाविधि धान्यके गुण को कहा है । अब शाक पदार्थोके गुणनिरूपण करेंगे । शाकोंके निरूपणमें उनके मूलसे ( जड ) लेकर फलपर्यंत वर्णन करेंगे । कमलकी मूली, नाडीका शाक और भी अन्य आलु व तत्सदृशकंद, मधुगंगा हस्तिकंद [ स्वनामसे प्रसिद्ध कोकण देशमें मिलनेवाला कंद विशेप । उसका गिरिवासः नागाश्रयः कुष्ठहता नागकंद आदि र्थाय हैं ] शूकरकदं ( वाराहीकंद ) आदि मूल कहलाते हैं ॥ २७ ॥
शालूक आदि कंदशाकगुण । शालकोरुकशेरुकोत्पलगणः प्रस्पष्टनालीविदा-। र्यादीनि श्वविपाककालगुरुकाण्येतानि शीतान्यपि ॥ लष्मोद्रेककराणि साधुमधुराण्युद्रिक्तपित्तामजि ।
प्रस्तुत्यानि बहिर्विसष्टमलमूत्राण्य क्तशुक्राणिच ॥ २८ ॥ भावार्थ:-कमलकंद, कशेरु, नीलोत्पल आदि, जो कमल के भेद हैं उनके जड, नाडी शाक का कंद, विदारीकंद, एवं दूसरे दिन पकने योग्य कंद, आदि कंदशाक पचनमें भारी हैं । शीत स्वभावी हैं । कफोद्रेक करनेवाले हैं। अच्छे व मोठे होते हैं । रक्त पित्तको जीतने वाले हैं । मल, मूत्र शरीर से बाहर निकालने में सहायक हैं और शुक्रकर हैं ॥ २८ ॥
अरण्यालु आदि कंदशक गुण । आरण्यालुलराटिकामुरटिका भूशर्करामाणकी। बिंदुव्याप्तसुकुण्डलीनमलिकाप्यार्थोऽनिलघ्न्यम्लिका ॥ श्वेताम्ली मुशली वराहकणिकाभहस्तिकण्योदयो ।
मृष्टाः पुष्टिकरा विपप्रशमना वातामयेभ्यो हिताः ॥ २९ ॥ भावार्थ:-----जंगली आलु, कमलकंद ( कमोदनी) मुरटिका ( कंद विशेष ) भूशर्करा ( सकर कंद व तत्सदृश अन्य कंद) मानकंद, कुण्डली, नमलिका, जमीकंद [ सूरण ] लहसन, अम्लिको श्वेताम्ली मूसलीकंद, वाराहीकंद ( गेठी ) कणिके, भूकर्णी हस्तिकणी आदि कंद स्वादिष्ट पुष्टिकर व विषको शमन करनेवाले होते हैं । एवं वातज रोगोंके लिए हितकर हैं ॥ २९ ॥
१ गुडूच्यां, सर्पिणी वृक्षे, कांचनारवृक्ष, कपिकच्छौ, कुमायाँ । २ अम्लनालिकायां । ३ पीठोंडीति प्रसिद्धवृक्ष विशेषे पर्याय-अम्लिका पिष्टोडी, पिण्डिका, आदि । ४ अग्निमंथवृक्षे । ५ स्वनामल्यात कदंविशेष, इस का पर्याय-हस्त्तिकर्ण, हस्तिपत्र, स्यूलकद अतिकद आदि ।
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