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धान्यादिगुणागुणविचार।
(६३)
कफको उत्पन्न करनेवाले हैं। पित्त, रक्त को शांतिदायक हैं अर्थात् शमन करनेवाले हैं । एवं पेट में जो कृमि उत्पन्न होते हैं उनको गिरा देते हैं ॥ ३५ ॥
पंचलवणगिण का गुण कुक्कुट्या समसूरपत्रलवणी युग्ममणी राष्ट्रिका । पंचैते लवणीगणा जलनिधेस्तीरं सदा संश्रिताः । वातघ्नाः कफपित्तरक्तजननाश्शोषावहा दुजेरा।
अश्मर्यादिविभेदनाः पटुतरा मूत्राभिषंगे हिताः ॥ ३६ ॥ • भावार्थ-शाल्मलीवृक्ष, मसूर, कचनारका पेड, दाडिमकावृक्ष, और कटाईका पेड ये पांच लवणीवृक्ष कहलाते हैं । ये वृक्ष समुद्रके किनारे रहते हैं । ये वातको दूर करनेवाले होते हैं कफ, पित्त और रक्तको उत्पन्न करते हैं । शरीरमें शोषोःपादक हैं। व कठिनतासे पचने योग्य हैं । पथरी रोग [ मूत्रगतरोग ] आदिको दूर करनेवाले हैं। मूत्रगत दोषोंको दमन करनेके लिये विशेषतः हितकर हैं ॥ ३६ ॥
पंचबृहती गणका गुण व्याघ्री चित्रलता बृहत्यमलिनादर्कोप्यधोमानिनी। त्येताः पंचबृहत्य इत्यनुमताः श्लेष्मामयेभ्यो हिताः ॥ कुष्ठघ्नाः क्रिमिनाशना विषहराः पथ्या ज्वरे सर्वदा ।
वार्ताकः क्रिमिसंभवः कफकरो मृष्टोतिवृष्यस्तथा ॥ ३७॥ भावार्थ-----कटेहरी, मजीठ अधोमानिनी वडी कटेली सफेद आक ये पांच बृहती कहलाते हैं, कफसे उत्पन्न बीमारियोंकेलिये हितकर हैं, कोढको दूर करनेवाले हैं, पेटकी क्रिमियोंको नाश करनेवाले हैं। ज्वरमें सदा हितकर हैं । बडी कटेली अथवा बेंगन कफ और क्रिमिरोगको उत्पन्न करनेवाले है । स्वादिष्ट और कामोद्दीपक है ॥३७॥
पंचवल्ली गुण तिक्ता बिंबलताच या कटुकिका मार्जारपाती पटीलात्यंतोत्तमकारवेल्लिसहिता पंचैव बल्य स्मृताः ॥ पित्तघ्नाः कफनाशनाः क्रिमिहराः कुष्ठे हिता वातलाः कासश्वासविषज्वरप्रशमना रक्ते च पथ्यास्सदा ।। ३८ ॥
. १ यस शद्वका अर्थ प्रायः नहीं मिलता है । मानिनी, इतना ही हो तो फूल प्रियंगु ऐसा अर्थ होता है।
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