________________
विषरोगाधिकारः ।
(४९३)
त्रयोदशविधकंदजविष व कालकूटलक्षण. कंदजानि विषमाणि विषाणि ज्ञापयामि निजलक्षणभेदैः । कालकूटविषकर्कटकोद्यत् कर्दमाख्यवरसर्षपकेन ॥ ३५ ॥ वत्सनाभनिजमूलकयुक्तं पुण्डरीकसुमहाविषसम्भा। मुस्तया सहितमप्यपरं स्यादन्य हालहलनामविषं च ॥ ३६ ॥ मृत्युरूपनिजलक्षणपालाकाख्यमन्यदपर च तथा वै-। राटकोग्रविषमप्यतिघोरं वीरशासनवशादवगम्य ॥ ३७ ॥ तत्त्रयोदशविधं विषमुक्तलक्षणैस्समधिगम्य चिकित्सेत् ।। स्पर्शहानिरतिवेपथुरुद्यत् कालकूटविषलक्षणमेतत् ॥ ३८ ॥
भावार्थ:-कंदज विष अत्यंत भयंकर होते हैं, अब उन का लक्षण, भेदसहित वर्णन करेंगे । कालकूट, कर्कटक, सर्षपक, कर्दमक, वत्सनाभ, मूलक, पुण्डरीक, महाविष संभाविष [श्रृंगीविष ] मुस्तक, हालाहल, पालक, वैराटक इस प्रकार कंदज विष तेरहप्रकार के होते हैं । यह महावीर भगवान के शासन से जानकर कहा गया है। ये विष अत्यंत उग्र व घोर हैं और मनुष्यों को साक्षात् मृत्यु के समान भयंकर हैं। [ ये विष किसी प्रकार से उपयोग में आजाय तो ] इन विषों के पृथक् २ लक्षणों से विष का निर्णय कर उनकी चिकित्सा करनी चाहिये । कालकूट विष के संयोग से शरीर का स्पर्शज्ञानशक्ति का नाश व अत्यंत कम्प ( काम्पना ) ये लक्षण प्रकट होते हैं । ३५॥ ३६॥ ३७ ॥ ३८ ॥
कर्कटक व कर्दमकविषजन्यलक्षण. उत्पतत्यटति चातिहसत्यन्यानशत्यधिककर्कटकेन । कर्दमन नयनद्वयपीत सातिसारपरितापनमुक्तम् ।। ३९ ।।
भावार्थ:-कर्कटक विषसे दूषित मनुष्य उछलता है । इधर उधर फिरता है। अत्यधिक हसता है। कर्दमक विषसे मनुष्यकी दोनों आंखे पीली होजाती है । और अतिसार व दाह होता है ॥ ३९ ॥
सर्षप वत्सनाभ विषजन्य लक्षण. . सर्षपेण बहुवातविकाराध्मानशलपिटकाः प्रभवः स्यात् ॥ पीतनेत्रमलमत्रकरं तद्वत्सनाभमतिनिश्चलकंठम् ॥ ४०॥ १ मर्कटक-इति पाठांतरं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org