________________
शास्त्रसंग्रहाधिकारः ।
में सूजन होती है ॥ ५२ ॥
" रोहिताक्ष मर्म. ऊोस्तूव वंक्षणस्याप्यधस्तादूरोर्मूले रोहिताक्षेऽपि तद्वत् । पक्षाघातःसक्थिशोफोऽस्रपातो मृत्यु स्यात्माणिनां वेदनाभिः ॥ ५३ ॥
भावार्थ:-उर्वी मर्म के ऊपर वंक्षणसंधि के नीचे उस ( साथल ) के मूल में ""रोहिताक्ष” नाम का मर्म है। वहां क्षत होने पर रक्तस्राव होने से पक्षाघात, (लकुआ) व पैर में सूजन होती है। कभी २ अत्यंत पीडा के साथ प्राणियों का मरण भी होजाता हे ॥ ५३ ॥
विटपमर्म. अण्डस्याधो वंक्षणस्यांतराले शुक्रध्वंसी स्याद्विटीपाख्यमर्म । ५. सक्न कस्मिन् तान्यथैकादशैव सक्थ्यन्यस्मिन् बाहुयुग्मेऽपि तद्वत् ॥५४॥ - भावार्थ:--अण्ड व वंक्षण संधि के बीच में “ विटप” नाम का मर्म है । वहां क्षत होनेपर शुक्रधातु का नाश होता है [ इसीलिये नपुसंकत्व भी होता है ] इस प्रकार एक टांग में ग्यारह मर्म स्थान हुए। इसी प्रकार दूसरी टांगमें दोनों हाथोमें ग्यारह . २ मर्म स्थान जानना चाहिये ॥ ५४ ॥
पादे गुल्फसुजानुसद्विटपनामान्येव वैशेषतो। । बाहौ तन्माणिबंधकूर्परलसत् कक्षाक्षसंधारणा-॥ ख्यानि स्युः कथिता उपद्रवगणाश्चात्रापि सर्वे चतु-। श्चत्वारिंशदिहाखिलानि नियतं माणि शाखास्वलं ॥ ५५ ॥
भावार्थ:-ऊपर कहा गया है कि जो पावों के मर्म होते हैं वे ही हाथ में होते हैं । लेकिन इन दोनों में परस्पर इतना विशेष है कि जो पैर में गुल्फ, जानु विटप मर्म हैं हाथो में उन कं जगह क्रमशः मणिबंध, कूर्पर, कक्षधर माम का मर्म जानना । अर्थात् गुल्म के स्थान में " मणिबंध' जानु के स्थान में " कूपर" विटफ के स्थान में " कक्षधर" समझना चाहिये। इन मर्मों के बिधने से, ये लक्षण प्रकट होते हैं जो गुल्फादिक में होते हैं । इस प्रकार शाखाओं [ हाथ पैर ] में ४४ च वालीस निश्चित मर्मों का वर्णन हुआ ॥ ५५ ॥
गुदद्वस्तिनाभिमर्मवर्णन, अथ प्रवक्षाम्युदरोरसस्थितानशेषमर्माणि विशेषलक्षणः । गुदे च बस्ती वरनाभिमण्डले क्षते व सद्यो मरणं भवेन्नृणाम् ॥ ५६ ॥
मामलोषमाणि विशेषलक्षणः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org