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(५५६)
कल्याणकारक
भावार्थ:--अब पेट व हृदय में रहनवाले सम्पूर्ण मर्मो को उन के विशेष लक्षण कथन पूर्वक कहेंगे ऐसी आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं। अपानवायु व मलके निकलनेके द्वारभूत बृहदंत्र से मिला हुआ जो गुद है वही " गुद मर्म " है । कमर के भीतर जो मूत्राशय [ मूत्र ठहरने स्थान ] है वही " बत्ति मर्भ " कहलाता है । आमाशय व पक्काशय के बीच में शिराओं से उत्पन्न जो नाभिस्थान है, वह "नाभिमर्म" कहलाता है। इन तीनों मर्म स्थानों के क्षत होनेपर मनुष्यों का सद्य [ उसी वखत ] ही मरण होता है ॥ ५६ ॥
हृदय, स्तनमूल, स्तनरोहितमर्मलक्षण उरस्यथामाशयमार्गसंस्थितं स्तनांतरे तद्धदये हतः पुनः । करोति सद्यो मरणं तथांगुलद्वयेप्यधस्तात्स्तनयोरिहापरे ।। ५७ ।। कफाधिकेन स्तनमूलमर्मणि कफ प्रकोपान्मरणं भवेन्नृणाम् । स्तनोपरि चंगुलतस्तु मर्मणी सरक्तकोपात्स्तनरोहितो तया ॥ ५८ ।।
भावार्थ:- छाती में दोनों रतनों के बीच, आमाशय के ऊपर के द्वार में स्थित, जो हृदय है (जो रक्त संचालन के लिये मुख्यसाधनभूत है) वह "हृदय मर्म" कहलाता है। वहां क्षत होनेपर उसी वखत मरण होता है । दोनों स्तनों [ चूचियों ] के नीचे दो अंगुलप्रदेश में " रतनमूल " नाम का मर्मस्थान है। वहां क्षत होवे तो कफप्रकोप से, अर्थात् प्रकुपितकोष्ठ में कफ भरजाने से मृत्यु होती है । दोनों चूचियों के ऊपर दो अंगुल प्रदेश में " रतनरोहित” नामक दो मर्म रहते हैं। वहां क्षत होवें तो रक्त प्रकुपित होकर [ रक्त कोष्ठ में भरजाने से ] मरण होता है ।। ५७ ॥५८॥
कपाल, अपस्तम्भमभलक्षण. अर्थासकूटादुपरि स्वपार्थयोः कपाल फाख्ये भवतस्तु मर्मणी। सयोश्च मृत्यू रुधिरेऽतिपूयतां गत पुनर्वातवहे तथापरे ॥ ५९॥ प्रधाननाड्यारुभयत्र वक्षसो मतेस्त्वपस्तंभविशेषमर्मणी। सतश्च मृत्युर्भवतीह देहिनां स्ववातपूर्णोदरकासनिस्वनैः ॥ ६० ।।
भावार्थ:-- असकूटों ( कंधों के नीचे, पाचौं पंसवाडों ) के ऊपर " कपाल " नाम के दो मर्म हैं। यहां क्षत होनेपर, रक्त का पीप होकर मृत्यु होती है । छाती के दोनों तरफ वात वहनेवाली दो नाडियां रहती हैं । उन में “ अपस्तम्भ " नाम के दो मर्म रहते है। इस में क्षत होने पर उदर में बात भरजाता है य कासश्वास से मृत्यु होती है ॥ ५९॥ ६०॥
१ इसे ग्रंथांतरो में अपलाप" भी कहते है।
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