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(५४८)
... कल्याणकारके
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मृत्युः पृष्टतलोपरि त्रिकगते मर्मण्यथासाटक [?]
स्यातां तत्फलके क्षतेऽपि करयोः स्वापातिशोषो नृणाम् ॥ ६४ ॥ भावार्थः-- दोनों स्तनों के मूलभाग से लेकर सीधा, पीठ में पृष्ठवंश [ पीठ के बांस ] के दोनों भागतक, “ बृहती " नाम के दो मर्मस्थान हैं । वहां अभिघात होने से रक्तस्राव होकर मृत्यु होती है । पीठ के ऊपर के भाग में [पीठ के बांस के दोनों तरफ ] त्रिकस्थान से बंधे हुए " असंफलक " नाम के दो मर्म हैं । वहां जखम होनेपर हाथ सूख जाते हैं अथवा सुन्न पड जाते हैं ॥ ६४ ॥
, कन्या अंसमर्मलक्षण. ग्रीवांसद्वयमध्यभागनियतौ स्यातां क्रकन्यांसको । तत्र स्तब्धशिरोंसबाहुनिजपृष्ट स्यान्नरो वक्षिते ।। तान्येतानि चतुर्दश प्रतिपदं पृष्ठे च मर्माण्यनु-॥
व्याख्यातान्यत ऊर्ध्वजत विहिताशेषाणि वक्ष्यामहे ॥ ६५ ॥ भावार्थः---ग्रीवा व अंस [ कांधे ] के बीच में "क्रकन्यांसक' नाम के दो मर्मस्थान होते हैं । जिन में आघात होने से शिर, अंस, वाहु व पीठ के स्थान स्तब्ध ( जकड जाना ) होते हैं । इस प्रकार पीठ में रहने वाले चौदह प्रकार के मर्म स्थान कहे गये हैं । अब हंसली की हड्डी के ऊपर रहनेवाले सर्व मर्मस्थानोंको कहेंगे । ६५॥
ऊर्ध्वजत्रुगत मर्म वर्णन. कंठे नाडीमुभयत इतो व्यत्ययान्नालमन्ये । द्वे द्वे स्यातामधिकतरमर्मण्यमी मूकतो वा ॥ वैस्वये वा विरस रसनाभावतो मृत्युरन्या ।
श्चाष्टौ ग्रीवाशिरामातृका मृत्युरूपाः ॥ ६६ ॥ भावार्थ:-कंठ नाडी के दोनों पार्यो में चार धमनी रहती हैं। उन में एक बाजू में एक " नीला" एक “ मन्या " इसी तरह दूसरी बाजू में भी एक “ नाला, एक “ मन्या" नाम के चार मर्म स्थान हैं। उन में चोट लगने से गूंगापना, स्वर विकार, जीभ विकृतरसवाली ( रस ज्ञानकी शून्यता ) होकर मृत्यु होती है। ग्रीवा ( गला ) के दोनों तरफ, चार चार शिरायें रहती हैं। उन में 'मातृका' नामक आठ मर्म रहते हैं। उन में चोट लगने से उसी समय मरण होता है ॥ ६६ ।।
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