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शास्त्रसंग्रहाधिकारः ।
(५५१)
कटीकतरुणान्वितांसफलके तथा शंखका। नितंबसहितानि तान्यमलिनास्थिमर्माण्यलं ॥ सकक्षधरकूर्चकुर्चशिरसाक्रकन्यांसका- । सबस्तिविधुरैरपि सुविटपं तथोत्क्षेपकाः ॥ ७३ ॥ क्षिप्रेऽऽण्यपि स्नायुपर्माण्यशेषाण्युक्तान्यूज़ संधिमर्माणि वक्ष्ये । जानुन्येवं कूपरे गुल्फसीमंतावर्ताख्याश्चाधिपेनाप्यथान्ये ।। ७४ ॥ क्रकाटिकाभ्यां मणिबंधको तथा कुकुंदुरे मर्ममयोरुसंधयः। अपालकाख्यस्थपनीफणस्तनप्रधानमूलान्यपि नीलमन्यका ॥७॥ श्रृंगाटकापांगसिराधिमातृकाश्चोर्वी बृहत्यूर्जितपार्श्वसंधयः । हनाभ्यपस्तंभकलोहिताक्षकाः माहुश्शिरामर्मविशेषवैदिनः ॥७६॥ तलहृदयेंद्रबस्तिगदनामयुतस्तनरोहितान्यपि । प्रकटितमांसमर्मगण इत्यखिलं प्रतिपादितं जिनैः ॥ बहुविधमर्मविद्भिषगशेषविपक्षगरोगलक्षणः ।
समुचितमाचरेत्तदपि पंचविधं फलमत्र मर्मणाम् ।। ७७ ।। भावार्थ:-कटीकतरुण, असफलक, शंख, नितम्ब नाम के जो मर्मस्थान है वे अस्थिगत मर्मस्थान हैं अर्थात् अस्थिमर्म है। कक्षधर, कूर्च, कूर्चशिर, ककन्यांसक, बस्ति, विधुर, विटप, उत्क्षेपक, क्षिप्र व आणि नाम के जो मर्म कहे गये हैं ये स्नायुमर्म कहलाते हैं ! जानु, कूप, गुल्फ, सीमंत, आवर्त, अधिपति, कृकाटिका, माणबंध कुकुंदर इतने मर्म संविमर्म कहलाते हैं । अपालक ( अपलाप ) स्थपनी, फण, स्तनमूल, नीला, मन्या, शृंगाटक, अपांग, मातृका, उीं, बृहती, पार्श्वसंधि, हृदय, नाभि, अपस्तम्भक, लोहिताक्ष ये शिरामर्म है ऐसा सर्वज्ञ भगवान् ने कहा है। तलहृदय, इंद्रबस्ति, गुदा, स्तनरोहित ये मांसमर्म हैं अनेक प्रकार के मर्मों के मर्म जाननेवाला वैद्य, सम्पूर्ण विपरीत व अविपरीगत लक्षणोंसे रोग को निश्चय कर उचित चिकित्सा करें । इन मर्मों के फल भी पांच प्रकार के हैं । अतएव फिर ( द्वितीय प्रकार ) से इन सभी मर्मों के १ सधप्राणहर, २ कालांतर प्राणहर, ३ विशल्यन, ( शल्य निकलते ही प्राणघात करनेवाले ) ४ चैकल्यकर, रुजाकर इस तरह, पांच भेद होते हैं ॥ ७३ ॥ ७४ ॥ ७५ ॥ ७६ ॥ ७७ ॥
सद्यप्राणहर व कालांतरप्राणहरमम. प्रोद्यत्कंठशिरागुदोहृदयबस्त्युक्तोरुनाभ्यां सदा । सद्यः पाणहराणि तान्यधिपतिः शखौ च श्रृंगाटकैः ॥
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