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शास्त्रसंग्रहाधिकारः।
(५३७)
इस प्रकार मधुरादि रस के संयोग से ५ भेद हुए। १ अम्ललवणकटुतिक्तकषाय अल्लादिरसों के संयोग से, यह एक भेद हुआ।
छहों रसों को एक साथ मिलाने से एक भेद होता है यथा मधुराम्ललवणकटुतिक्त कषाय । इस प्रकार कुल रसों के त्रेसठ भेद का विवरण समझना चाहिये ॥ २८ ॥
. अयोगातियोगसुयोगलक्षण. सर्वमिहाखिलामयविरुद्धमयोगमतिप्रयोगमु-। द्यद्वरभेषजैरतिनियुक्तमशेषविकारविग्रहं ॥ सम्यगितःप्रयोगमुपदिष्टमुपक्रमभेदसाधन-।
रायुररं विचार्य बहुरिष्टमणैरवबुध्य साधयेत् ।। २९ ॥ भावार्थ:-जो औषधप्रयोग रोग के लिये हरतरह से विरुद्ध है उसे अयोन कहते हैं । जो रोग के शक्ति की अपेक्षा [ अविरुद्ध होते हुए भी.] अधिकमात्रा से प्रयक्त है उसे अतियोग कहते हैं। जो योग रोग को नाश करने के लिये सर्व प्रकार से अनुकूल है अतएव रोग को पूर्णरूपेण नाश करने में समर्थ है उसे सम्यगयोग याहते हैं । वैद्य को उचित है कि अरिष्ट समूहों से रोगी के आयु को विचार कर, अर्थात् आयुका प्रमाण कितना है, इस बातको जानकर, अनेक भेदसे विभक्त उपक्रम (प्रतीकार) रूपी साधनों से रोग को साधना चाहिये, [ चिकित्सा करनी चाहिये ] ॥ २९ ।।
रिटवर्णनप्रतिज्ञा. स्वस्थजनोद्भवान्यधिकृतातुरजीविननाशतरि-। शान्यपि चारुवीरनिनवचोदितलक्षणलक्षितानि तान्यत्र निरूपयाम्यखिलकर्मरिपूनपहंतुमिच्छतां ।
तत्वविदां नृणाममलमुक्तिवधूनिहिताभिकांक्षिणाम् ॥ ३० ॥ ___ भावार्थः- अब आचार्य कहते हैं कि जो भव्य खत्ववेत्ता संपूर्ण कर्मशत्रुओंको नाश कर मुक्तिलक्ष्मी को वरना चाहते हैं, उन के लिये हम स्वस्थ मनुष्य में भी उत्पन्न रोगी के प्राण को नाश करने के लिये कारणभूत रिष्ट [ मरणचिन्हों ] का निरूपण श्री महावीरभगवंत के बचनानुसार लक्षणसहित करेंगे ॥ ३० ॥
रिष्टसे मरणका निर्णय. मेघसमुन्नतैराधिकवृष्टिरिवेष्टविशिष्टरिष्टस-। , दर्शनतो नृणां मरणमप्यचिराद्भवतीति तान्यशे-॥
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