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कल्याणकारक
बलारसायन । यत्नालामूलातुलां विशोष्य । अली. तो शुद्धतनुः पलार्धम् ॥ नित्यं पिबेदुग्धविमिश्रितं त-।
उजीर्ण घृतक्षारयुतानझुक्तिः ॥ ५० ॥ भावार्थ:---- खोटी की जड़ को अच्छी तरह सुखाकर उसे चूर्ण करें। वमन आदि से शरीर की शुद्धि करके उसे प्रतिनित्य दो तोले दूध के साथ सेवन करें। जीर्ण होने के बाद घी दूध से भोजन करें ॥५०॥
বাৰিতাতি খাল। पिवेत्तथा नागवलातिपूर्वबलातिचूणे पयसा प्रभाते । नवेद्विदायोश्च पिकेन्मनुप्यो।
महायलायुष्ययुतो वयुष्मान् ॥ ५१ ॥ भावार्थ:---- इसी प्रकाः गंगेरन, सहदेईका ( कंघी ) चूर्ण कर दूध के साथ व विदारिकन्द के चूर्ण को दूध के साथ उपयोग करें तो शरीर में बल बढता है । दीर्घायु होता है, शरीर सुंदर बनता है ॥५१॥ ..
স্বাঃ - বসুন। गुडान्वितं वाकुचियोजचूर्ण-। मयोघटन्यस्तमतिप्रयत्नात् ॥ निधाय धान्ये - अवि सारानं । व्यपेनदोषोऽक्षफलप्रमाणम् ॥ ५२ ।। प्रभक्ष्य तच्छीतजलानुपानं । रसायनाहाराविधानयुक्तः ॥ निरामयस्सर्वमनोहरांग-. ।
ससमाशतं जीवति सत्वयुक्तः ।। ५३ ।। भावार्थ:-~-गुडसे युक्त वाकुची बीज के चूर्णको लोहेंके धडेम बहुत यत्न पूर्वक रखकर धान की राशि वा भूमि में, अथवा जमीन में गड्डा खोदकर, उसमें धान भरकर, उसके बीच में रखें । तदनंतर शुद्ध शरीर होकर ( वमन विरेचनादिसे शुद्ध होकर.) वह बहेडाके फल के बराबर रोज लेवे, व कारसे ठण्डा पानी पीलय । जीर्ण होनेपर रसायन
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