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(३१०)
.. कल्याणकारके
... भावार्थ:-दस प्रकारके, विषम शंखक आदि शिरोरोगों के लक्षण व चिकित्सा को निरूपण करके अब कर्णगतसमस्तरोगाको संक्षेपसे विशेषलक्षणोंके साथ कहेंगे ॥ १० ॥
अथ कर्णरोगाधिकारः।
कर्णशूल कर्णनादलक्षण. अथानिलः कर्णगतोऽन्यथा चरन् । करोति कर्णाधिकशलमुख तम् ।। स एव शद्वाभिवहास्सिराश्रितः । प्रणादसंज्ञः कुरुतेऽन्यथा ध्वनिम् ॥११
भावार्थ:-कर्णगत वायु प्रकुपित होकर उल्टा फिरने लगता है तो कानोंमें तीव्र शूल उत्पन्न होता है । इसे कर्णशूल कहते हैं । वहीं कर्णगत वायु प्रकुपित होकर' शब्दवाहिनी सिराओंको प्राप्त करता है तो कानों में नाना तरहके, मृदंग, भेरी, शंख, आदिके शब्द के समान विपरीत शब्द सुनाई पडता है। इसे कर्णप्रणाद या कर्णनाद कहते हैं ॥ ११ ॥
बधिर्यकर्ण व क्षोद लक्षण. ... स एव वातः कफसंयुती नृणां । करोति बाधिर्यमिहातिदुःखदम् ॥
विशेषतः शतपथे व्यवस्थिती । तथा तितत्क्षाद समुद्रघोषणम् ॥ १२ ॥
भावार्थ:-~~-वही प्रकुपित कर्णगत वायु कफके साथ संयुक्त होकर जब शद्ववाहिनी शिराओंभे ठहर जाता है तो कानको बधिर (बहरा) कर देता है । वही वायु अन्य दोषोंसे संयुक्त होकर शद्ध वाहिनी सिरावोमें ठहरता है तो कानमें समुद्र घोष जैसा शब्द सुन पडता है । इसे कर्णक्षोद कहते हैं ॥ १२ ॥
कर्णस्राव लक्षण. जलप्रपाताच्छिरसोभियाततः । प्रपाकतस्तपिटकादिविद्रधेः॥ . अजस्रमात्रावमिहास्रवत्यलं । स कर्णसंस्राव इति स्मृतो बुधैः ॥ १३ ॥
भावार्थ:-जलके पातसे ( गोता मारने ) सिरको चोट आदि लगनेसे; पिटिका विद्रधि आदिके उत्पत्ति होकर पककर फूट जानेसे, सदा कानसे मवाद बहता है, उसे 'कर्णसंस्राव रोग कहते हैं ॥१३॥
. पूतिकर्ण कृमिकर्ण लक्षण. सपूतिपूयः श्रमणात्रवेद्यदा । स पातकों भवतीह देहिनम् ॥ . भवंति यत्र क्रिमयोऽतिदारुणाः । स एव साक्षात्किमिकर्णको भवेत्॥ १४
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