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विषरोगाधिकारः ।
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(१८६)
अवदरणातिशोफबहुपादगुरुत्वरुजा।
विषयुतपादुकायपकृताश्च भवेयुः ॥ १६ ॥ भावार्थ:-विषयुक्तमुकुट, शिरोऽवलेखन [ कंघा आदि ] आदि व्यवहार में आनेपर माला के विष के सदृश लक्षण प्रकट होते हैं। विषयुक्त पादुका [ खडाऊ जूता आदि ] के पहरने से पाद फट जाते हैं, सूजन हो जाती है, पाद भारी पीडा से संयुक्त ब स्पर्शज्ञान शून्य हो जाते हैं ॥ १६ ॥
वाहननस्यधूपगतविषलक्षण. गजतुरगोष्ट्रपृष्ठगतदुष्टविषेण तदा-। ननकफसंस्रवश्व निजधातुरिहोरुयुगे (१) ॥ गुदवृषणध्वजेषु पिटकावयथुप्रभवो ।
विवरमुखेषु नस्यवरधूपविषेऽस्रगतिः ॥ १७ ॥ ... भावार्थ:-हाथी, घोडा व ऊंठ के पीठपर विषप्रयोग करनेसे, उन सवारीयों के मुंह से कफ का स्राव होता है (आंखे लाल होती है) और धातु स्राव होता है । उन पर जो सवारी करते हैं उन के दोनों ऊरू में गुदा अण्डकोष में फुन्सी व सूजन हो जाती हैं। विषयुक्त नस्य व धूम के उपयोग से स्रोतों ( मुख नाक आदि ) से रक्त बहता है और इंद्रिय विकृत होते हैं ॥ १७ ॥
अंजनाभरणगतविषलक्षण. विकृतिरथेंद्रियेषु परितापनमश्रुगति-। विषबहलांजनेन भवति प्रबलाध्यमपि ॥ विषनिहतप्रभाणि न विभांत्यखिलाभरणा-।
न्यतिविदहन्त्यरूंष्यपि भवंति तदाश्रयतः ।। १८ ॥ भावार्थ:-विषयुक्त अंजन के उपयोग से आंख में दाह, अश्रुपात, व अंधेपना भी आजाता है । विषसे दूषित आभरण उज्वल रूप से दिखते नहीं ( जैसे पहिले चमकते थे सुंदर दिखते थे वैसे नहीं दिखते ) और वैसे आभरणोंको धारण करनेसे उन अवयवोमें जलन होती है और छोटी २ फुन्सी पैदा होती हैं ॥ १८ ॥
१ इंद्रियोंमें विकृति नस्य व धूमप्रयोग से होती है। क्यों कि अंजन के प्रयोगसे केवल आंखोमें विकार उत्पन्न होता है अन्य इंद्रियों में नहीं । ग्रंथांतर में भी लिखा है।
" नस्यधूमगते लिंगमिंद्रियाणां तु वैकृतम् ।”
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