________________
बालग्रहभूततंत्राधिकारः।
(४५३)
आकार में [दाल] होती हैं तथा सर्वधान्य व समस्त द्विदल के आकार में होकर फलके समान योग्य काल में पीले वर्णको धारण करती हैं ॥ ३१ ॥
विस्फोट लक्षण. विशेषविस्फोटगणास्तथापरे भवंति नानाद्रमसत्फलोपमाः। भयंकराः प्रणाभृतां स्वकर्मतो बहिर्मुखांतर्मुखभेदभेदिकाः॥ ३२ ॥
भावार्थ:-प्राणियोंके पूर्वोपार्जित कर्म के कारण से, मसूरिका रोग में फफोले भी होते हैं, जो अनेक वृक्षोंके फलके आकार में रहते हैं। वे भयंकर होते हैं । उन में बहिर्मुख स्फोटक [इसकी मुंह बाहर की ओर होती है व अंतर्मुख स्फोटक शिरीर के अंदर की ओर मुखवाली] इस प्रकार दो भेद है ॥ ३२ ॥
अरुषिका. सितातिरक्तारुणकृष्णमण्डलान्यणून्यरूप्यत्र विभांत्यनंतरम् । निमग्नमध्यान्यसिताननानि तान्यसाध्यरूपाणि विवर्जयद्भिषक् ॥३३॥
भावार्थ:-सफेद, अत्यधिकलाल, अरुण [साधारण लाल] व काले वर्ण के चकत्तों से संयुक्त, छोटी पिटकायें पश्चात् दिग्वने लगती हैं। यदि पिटकाओंके मध्यभाग में गहराई हो और उनका मुख काला हो तो उन्हे असाध्य समझना चाहये । इसलिये ऐसे पिटकाओंको वैद्य छोड देवें ॥ ३३ ॥
___ मसूरिकाके पूर्वरूप. ममूरिकासंभवपूर्वलक्षणान्यतिज्वरारोचकरोमहर्षता । विदाहतृष्णातिशिरांगहृदुजः ससंधिविश्लेषणगाढनिद्रता ॥ ३४॥ प्रलापमूभ्रिमवक्त्रशोषणं स्वचित्तसम्मोहनशूलज़म्भणम् । सशोफकण्डूगुरुगात्रता भृशं विषातुरस्येव भवंति संततम् ॥ ३५ ॥
भावार्थ:-अत्यधिक चर, अरोचकता, रोमांच, अत्यंतदाह, तृषा, शिरशूल, अंगशूल व हृदयपीडा, संधियोंका टूटना, गाढ निद्रा, बडबडाना, मूर्छा, भ्रम, मुग्वका सूखना, चित्तविभ्रम, शूल, जंभाई, सूजन, खुजली, शरीर भारी हो जाना, और विष के विकार से पीडित जैसे होजाना यह सब मसूरिकासंग के पूर्वरूप हैं। अर्थात् मसूरिका रोग होने के पहिले ये लक्षण प्रकट होते हैं ॥ ३४ ॥ ३५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org