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बालग्रहभूततंत्राधिकारः।
(४६७)
भागर्थः-पूतनागृहीत बालक का शरीर स्वस्थ होते हुए भी, दिन और रात में वह सुखपूर्वक नहीं सोता है ( उसे नींद नहीं आती है ) उसे भूत को जीतने वाले नीम, वरना, अकौवा, नील आस्फोता, [ सारिवा ] इन औषधियोंसे पकाये हुए पानीसे सेचन करना चाहिये ॥ ९० ॥
पूतनाग्रहन तैल व धूप. -कुष्ठसर्जरसतालकोग्रगंधादिपक्वतिलज विलेपयेत् । अष्टमृष्टगणयष्टिकातुगासिद्धसर्पिरपि पाययेच्छिशुम् ॥ ९१ ।।
भावार्थ:-- कूठ, राल, हरताल, वचा [ दूव गिलोय ] आदि औषधियोंसे पक्क तिलके तेलको इसमें लेपन करना चाहिये । एवं च अप्टमधुरौषध [काकोल्यादि] मुलहटी व वंशलोचन से सिद्ध घृतको उस बालक को पिलावें ॥ ९१ ॥
पूतनाग्रहन्न बलि स्नान. . स्नापयेदपि शिशु सदैव सोच्छिष्टभोजन जलैविधानवित् । शून्यवेश्मनि रहस्यनावृत नित्कुरूटनिकटे ( ? ) भिषग्वरः ॥ ९२ ॥
भावार्थ:-बालग्रह के उपचार को जानने वाला वैद्यवर पूतनाविष्ट बालक को शून्य मकान अथवा किसी एकांत स्थान व खुले शून्य बगीचे के समीप में जूठे भोजन के जल से सदैव स्नान कराना चाहिये ॥ ९२ ॥
पूतनाग्रहन्न धूप. चंदनागुरुतमालपत्रतालीसकुष्ठखदिरैघृतान्वितैः । केशरोमनखमानुपास्थिभिः धूपयेदपि शिशुं द्विसंध्ययोः ॥ ९३ ॥
भावार्थ:-चंदन, अगुरु, तम्बाखू, तालीसपत्र, कूठ, खदिर प्राणियों के केश, रोम, नख व मनुष्योंकी हड्डी इन को चूर्ण कर फिर इस में घी मिलाकर दोनों संध्याकालों में धूनी देना चाहिये ॥ ९३ ॥
पूतनान धारण व बलि. चित्रबीजसितसर्षपेंगुदी धारयेदपि च काकवल्लिकां । स्थापयेवलिमिहोत्कुरूटमध्ये सदा वृ.शरमर्चितं शिशोः ॥ ९४ ॥ १ अपरे गिरिकीमाहुः
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