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कल्याणकारक
भावार्थ:-जिसमें संपूर्ण द्रव्य, तत्व व पदार्थरूपी तरंग उठ रहे हैं, इह लोक परलोकके लिये प्रयोजनीभूत साधनरूपी जिसके दो सुंदर तट हैं, ऐसे श्रीजिनेंद्रके मुखसे उत्पन्न शास्त्रसमुद्रसे निकली हुई बूंदके समान यह शास्त्र है । साथमें जगतका एक मात्र हितसाधक है [ इसलिये इसका नाम कल्याणकारक है ] ॥ १३७ ॥
इत्युग्रादित्याचार्यविरचित कल्याणकारके चिकित्साधिकारे क्षुद्ररोगचिकित्सिते बालग्रहभूततंत्राधिकारेऽ
प्यष्टादशः परिच्छदः ।
इत्युग्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारक ग्रंथ के चिकित्साधिकार में विद्यावाचस्पतीत्युपाधिविभूषित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा लिखित भावार्थदीपिका टीका में क्षुद्ररोगाधिकार में बालग्रहभूततंत्रप्रकरण
नामक अठारहवां परिच्छेद समाप्त हुआ।
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