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कल्याणकारके
भावार्थ:-राक्षस से पीडित मनुष्य को मांस, मद्य व रक्त अत्यंतप्रिय होते हैं। वह अत्यंत शूर, क्रूर, लज्जारहित, बलशाली एवं रात्रि में गमन व रने वाला होता है। उस के शरीर में सूजन व पीडा रहती है ॥ १२४ ॥
पिशाचपीडित का लक्षण. धूसरोऽतिपरुषः खरस्वरः शौचहीनचरितः प्रलापवान् ॥ भिन्नशून्यगृहवासलोलुपः स्यात्पिशाचपरिवारितो नरः ॥ १२५॥
भावार्थ:-पिशाच ग्रह से पीडित मनुष्य का शरीर धूसर (धुंदला) व अति कठिन होता है, स्वर गर्दभसदृश कर्कश होता है। एवं च उसका आचरण मलिन रहता है। सदा बडबड करता रहता है । एकांत व सूने घर में रहनेकी अधिक इच्छा करता
नागग्रहपीडित का लक्षण. सर्पवत्सरति यो महीतले सूकमोष्ठमपि लेहि जिह्वया ।. . कुप्यतीह परिपीडितः पयःपायसेप्सुरुरगग्रहाकुलः ॥ १२६.॥...
भावार्थ:-जो उरग ग्रहसे पीडित है वह सर्प के समान भूतलमें सरकता है। और मुख के दोनों ओरके कोनों को एवं ओष्ठ को जीभसे चाटता है । कोई उसे कुछ कष्ट देखें तो उनपर खूब क्रोधित होता है। दूध व खीर को खानेकी उसे बडी इच्छा रहती है ॥ १२६ ॥
ग्रहों के संचार व उपद्रव देने का काल. देवास्ते पौर्णमास्यामसुरपरिचरास्संध्ययोस्संचरंति । पायोऽष्टम्यां विशेषादभिहितगुणगंधर्वभृत्यानुभृत्याः ॥ यक्षा मंक्षु क्षिपंति प्रतिपाद पितृभूतानि कृष्णाख्यपक्षे । रात्रौ रक्षांसि साक्षाद्भयकृतिदिनभूस्ते पिशाचा विशंति ॥१२७॥ पंचम्यामुरगाश्चरंति नितरां तानुक्तसल्लक्षणे- । ख़त्वा सत्यदयादमादिकगुणः सर्वज्ञभक्तस्स्वयम् ॥ साध्यान्साधयतु स्वमंत्रबलवद्भपज्ययोगभिषक् । क्रूराः कष्टतरा ग्रहा निगदिताः कृच्छ्रास्तु बालग्रहाः ॥ १२८ ॥
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