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कल्याणकारके
भावार्थ:-कैथ, शाली धान, चावल, खश, नेत्रावाला, इन को वा मटर, कालेयक, ( पोला वर्ण का सुगंधकाष्ट जिस को पीला चंदन भी कहते हैं ). चमेली के पत्ते इन को वा तिल, कालाचंदन इनको, दूध के साथ पीसकर व ..गव्यघृत मिलाकर लेप कर तो त्वचा सवर्ण बन जाता है ॥ ६१ ॥
उपसर्गज मसूरिका चिकित्सा. महोपसर्गप्रभवाखिलामयानिवारयन्मंत्रमुतंत्रमंत्रावित् । प्रधानरूपाक्षतपुष्पचंदनैस्समर्चयेज्जनपदाम्बुजद्वयम् ॥ ६२ ॥
भावार्थ:--महान् उपसर्ग से उत्पन्न मसूरिका आदि समस्त रोगों को योग्य मंत्रा, यंत्रा व तंत्रके प्रयोगसे निवारण करना चाहिये । एवं श्रेष्ठ अक्षत पुष्प चंदनादिक अष्टव्योंसे बहुत भक्ति के साथ श्री जिनेंद्रभगवंतके चरणकमल की महापूजा करनी चाहिये ॥ ६२॥
मसूरिका आदि रोगोंका संक्रमण. सशोफकुष्ठज्वरलोचनामयास्तथोपसर्गप्रभवा ममूरिका । तदंगसंस्पशनिवासभोजनानरान्नरं क्षिप्रमिह व्रजति ते ॥ ६ ॥
भावार्थ:-शोफ, ( सूजन ) कोढ, ज्वर, नेत्ररोग व उपसर्ग से उत्पन्न मसूरिका रोग से पीडित रोगीके स्पर्श करनेसे, उसके पास में रहनेसे एवं उसो छुया हुआ भोजन करनेसे, ये रोग शीघ्र एक दूसरे को बदल जाते हैं || ६३ ॥
. उपसर्गज मसूरिका में मंत्रप्रयोग. ततः सुमंत्रक्षररक्षितस्स्वयं चिकित्सको मारिगणान्निवारयेत् । गुरूनमस्कृत्य जिनेश्वरादिकान् प्रसाधयेन्मंत्रितमंत्रसाधनैः ॥ ६४ ॥
भावार्थ:-इसलिये इन संक्रामक महारोगोंको जीतनके पहिले वैद्यको उचित है कि वह पहिले शक्तिशाली बीजाक्षरों के द्वारा अपनी रक्षा करलेवें। बाद में जिनेंद्र भगवंत व सद्गुरुवों को नमस्कार कर मंत्रप्रयोगरूपी साधन द्वारा इस रोग को जीतें ॥ ६४ ॥
भूततंत्रविषतंत्रमंत्रविद्योजयेत् तदनुरूपभेषजैः । भूतपीडितनरान्विषातुरान् वेषलक्षणविशेषतो भिषक् ॥. ६५ ॥ . .
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