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बालग्रहभूतंत्राधिकारः
(४५७)
भावार्थ:-शिवार, खस, कसेरु, कास, दर्भा इनके जडको ईखके रस के साथ पीस कर लगावें। और यदि विषज मसूरिका हो तो विषहर औषधियोंका लेपन करना चाहिये ॥ ४८ ॥
मसूरिका नाशक क्वाथ. सनिंबसारामृतचंदनांबुदैविपकतोयं प्रपिवेत्सशर्करम् । ममूरिकी द्राक्षहरीतकामृतापटोलपाठाकटुरोहिणीघनैः ।। ४९॥ अरुष्करांम्रांबुसधान्यरोहिणी घनैः श्रुतं शीतकषायमेव वा । पिवेत्सदा स्फोटममूरिकापहं सशर्करं सेक्षुरस विशेषवित् ॥ १० ॥
भावार्थ:-नीबकी गरी, गिलोय, लाल चंदन, नागरमोथा इन से पकाये हुए काढे में शक्कर मिलाकर मसूरिका से पीडित व्यक्ति पीयें। एवं द्राक्षा, हरड, गिलोय, पटोलपत्र, पाठा, कुटकी, नागरमोथा इनके क्वाथ अथवा भिलावा, आम, खश, धनिया, कुटकी, नागरमोथा इन के काथ वा शीत कषाय को पीवें । ईख के रस में शक्कर मिलाकर पीनेसे स्फोटयुक्त मसूरिका रोग दूर हो जाता है ॥ ४९ ॥ ५० ॥
.. पठ्यमान मसूरिकामें लेप. विपच्यमानामु ममूरिकासु ताः प्रलेपयेद्वातकफोत्थिता भिषक् । समस्तगंधौषधसाधितन सत्तिलोद्भवेनाज्यगणैस्तथापरः ॥ ५१ ॥
भावार्थ:-वात व कफ के विकारसे उत्पन्न जो मसूरिका है यदि वह पक रही हो तो सर्थ गंधौषधों से सिद्ध तिलका तैल लेपन करना चाहिये यदि पित्तज मसूरिका पक रही हो तो, सर्वगंधौषधसे सिद्ध घृतवर्ग का लेपन करना चाहिये ॥ ५१ ॥
पच्यमान व पक्कमसूरिकामें लेप. विपाककाले लघु चाम्लभोजनं नियुज्य सम्यक्परिपाकमागतां । विभिध तीक्ष्णैरिह कंटकैश्शुभैः सुचक्रतैलेन निषेचयद्भिषक् ।। ५२ ॥
भावार्थ:-मसूरिका के पकनेके समय में रोगी को हलका व खट्टा भोजन कराना चाहिये । जब वह पक जाय उस के बाद तीक्ष्ण व योग्य कांटे से उसे फोडकर उस पर चकतैल (चक्की से निकाला हुआ) नया (ताजे) डालना चाहिये ॥ ५२ ॥
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