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क्षुद्ररोगाधिकारः।
क्षुद्रतमकलक्षण. क्षुद्रको भवति कर्मणि जातः । तभिवृत्तिरपि तस्य निवृत्ती ॥ योषवान् स कफकाससमेतो । दुर्बलस्य तमकोऽन्नविरोधी ॥ ५ ॥
भावार्थ:---कुछ परिश्रम करने पर जो श्वास उत्पन्न होता है विश्रांति लेने पर अपने आप ही शांत होता है उसे क्षुद्श्वास कहते हैं । जो दुर्बल मनुष्य को शद्वयुक्त कफ व खांसी के साथ श्वास चलता है, और जो अन्न के खानेसे बढ़ता है, उसे तमक- . धाम. कहते हैं ॥५॥
छिन्न व महाश्वास लक्षण. छिन्न इत्युदरपूरणयुक्तः । सोष्णबस्तिरखिलांगरुगुनः॥ स्तब्धदृष्टिरिह शुष्कगलोऽति- । ध्वानशूलसहितस्तु महान् स्यात् ॥ ६ ॥
भावार्थ:-जिस श्वास में पेट फूलता हो, बस्ति ( मूत्राशय) में दाह होता हो, सम्पूर्ण अंगों में उप्र पीडा होती हो (जो ठहर ठहरकर होता हो) उसे छिन्न श्वास कहते हैं | जिस की मौजूदगी में दृष्टि स्तब्ध होती हो, गला सूख जाता हो, अत्यंत शब्द होता हो, शूल से संयुक्त हो ऐसे श्वास को महाश्वास कहते हैं ॥६॥ ..
. . ऊर्ध्व श्वासलक्षण. मर्मपीडितसमुद्भवदुःखो । बाढमुच्छसिति नष्टनिनादः॥ अर्ध्वदृष्टिरत एव महोर्ध्व- । श्वास इत्यभिहितो जिननायः ॥ ७ ॥
भावार्यः-- जिस में अत्यधिक उर्ध्व श्वास चढता हो, साथ में मर्मभेदी दुःख होता हो, आवाजका नाश होगया हो, आंखे ऊपर चढ गई हो तो ऐसे महान् श्वासको जिनभगवानने ऊर्चश्वास कहा है ॥ ७॥
साध्यासाध्य विद्यारs . क्षुद्रकस्तमक एव च साध्यो । दुर्वलस्य तमकोऽप्यतिकृच्छ । वर्जिता मुनिगगैरवशिष्टाः । श्वासिनामुपरि धारुचिकित्सा ॥ ८॥
भावार्थ:-क्षुद्रक और तमकश्यास साध्य हैं । अत्यधिक दुर्बल मनुष्य हो तो तमक श्वास भी अत्यंत कठिनसाथ्य है । बाकीके श्वासोंको मुनिगण त्यागने पोग्य कहते हैं । यहां से आगे मास रोगियोंकी श्रेष्टचिकित्सा का वर्णन करेंगे ॥८॥
. श्वासांचीकत्सा. छर्दनं प्रतिविधाय पुरस्तात् । स्नेहबस्तिविगतां च विशुद्धिम् ॥ योजयेवलवतापवलानाम् । वासिनामुपशमौषधयोगान् ॥ २॥
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