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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(४२५)
भावार्थ--- छोटी इलायची व हींग के चूर्ण में घी गुड मिलाकर, दूध के साथ पीने से नानाप्रकार के मूत्रकृच्छ रोगों को एवं शुक्रगत मूत्ररोगों को भी नाश करता है ॥ ७० ॥
क्षारोदक. यवजपाटलबिल्वनिदिग्धिका । तिलजकिंशुकभद्रकभस्मीन- । मृतजलं सवरांगविलंगमूषकफलैः त्रुटिभिः परिमिश्रितं ॥ ७१ ।। प्रसृतमेतदथार्धयुतं च वा । घृतगुडान्वितमेव पिबेन्नरः । सफलभक्षणभोजनपानकान्य नुदिनं विदधीत तथामुना ।। ७२ ।।
भावार्थ:-जौका पचांग, पाढल, बेल, कटली, तिल का पचांग, ढाक, नागर मोथा इन को जलाकर भस्म करें। इसे पानी में घोलकर छान लेवें । इस क्षार जल में दालचीनी, विडंग, तरुमूषिक [ वृक्ष जाति की मूसाकानी ] के फल व छोटी इलायची के चूर्ण को मिलावें। फिर इसे घी गुड के साथ ८ तोला अथवा ४ तोला प्रमाण प्रमेहरोगी पीवें । एवं इसी क्षारसे संपूर्ण भक्ष्य, भोजन पानक आदिकोंको बनाकर प्रतिदिन खाने को देवें ॥७२॥
· त्रुट्यादियोग. विविधमूत्ररुजामखिलाश्मरीमधिकशर्करया सह सर्वदा । शमयतीह निषेवितमंबुतत्त्रुटिशिलाजतुपिप्पलिकागुडैः ॥ ७३ ।।
भावार्थ:-छोटी इलायची शिलाजित, पीपल व गुड इनको पानी के साथ सेवन करें तो नाना प्रकार के मूत्ररोग सर्वजाति के अश्मरी एवं शर्करा रोग भी शमन होते हैं ॥ ७३ ॥
अथ योनिरोगधिकारः।
__ योनिरोग चिकित्सा. अथ च योनिगतानखिलामयान्निजगुणैरुपलक्षितलक्षणान् । प्रशमयेदिह दोषविशेषतः प्रतिविधाय भिषग्विविधौषधैः ।। ७४ ॥
भावार्थ:-सम्पूर्ण योनिरोग, जो उन के कारण भूत, तत्तद्दोषों के लक्षणों से संयुक्त हैं उन को, उन २ दोषानुसार, नानाप्रकार की औषधियोसे चिकित्सा कर के वैध शमन करें।
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