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कल्याणकारके
छर्दिरोगीको पथ्यभोजन व वातजछर्दिचिकित्सा. शुष्कसात्म्यलघुभोजनमिष्टम् । साम्लसैंधवयुता च यवागूः ॥ क्षीरतोयमहिमं परिपीतं । छर्दिमाशु शमयत्यनिलोत्थम् ।। ४३ ।।
भावार्थ:--इस में सूखा, शरीरको अनुकूल व लघु भोजन करना हितकर है । आम्ल सहित संधा लोण से युक्त यवागू तथा गरम दूध में पानी मिलाकर पीवे तो छर्दि रोग शीघ्र दूर होता है । ४३ ॥
वातजछर्दिमें सिद्धदुग्धपान. बिल्वमंथबृहतीद्वयटटू- । कांघ्रिपक्क जलसाधितदुग्धम् ॥ पाययेदहिममाज्यसमेतम् । छर्दिषु प्रबलवातयुतासु ॥४४॥
भावार्थ:--पेल, अगेथु, छोटी बडी कटेहली, टेटू इन के जड से पकाये हुए पानीसे सिद्ध गरम दूध में घी मिलाकर पिलावे तो वातकृत प्रबल छदिरोग दूर होत.
पित्तजर्दिचिकित्सा. आज्यमिश्रममलामलकानां : कामिक्षुरसदुग्धसमेतम् ॥ पाययेदधिकशीतलवगैः । छर्दिषु प्रबलपित्तयुतासु ॥ ४५ ॥
भावार्थः-घृतसे मिश्रित निर्मल आमलेके क्वाथ में ईखका रस व दूधको एवं शीतल वर्गौषधियोंको मिलाकर पिलाने से पित्तकृत प्रबल छर्दिरोग दूर होता है ॥४५॥
काजछर्दिचिकित्सा. पाठया सह नृपांघ्रिपमुस्ता । निंबसिद्धमीहमं कटुकाव्यम् ॥ पाययेत्सलिलमत्र बलास- ! छर्दिमेतदपहंत्यचिरेण ॥४६ ॥
भावार्थः-पाठा, आरबध ( अमलतासका गूदा ) मोथा व निंबसे सिद्ध पानी म सोठ मिरच, पीपल आदि बटुऔषधि मिलावर दिलाने से .प.वृत छर्दिरोग शीघ्र दूर होता है ॥ ४६ ॥
सन्निपातजींदाचीकरला. सर्वदोष ननितामपि साक्षा- । च्छर्दिमप्रतिहतामृतवल्ली ।। काथमेव शमयच्च सितान्यं । पाययेन्नरमरं परमार्थम् ।। ४७ ॥
'भावार्थ:--- सन्निपातज छर्दिश में काले आदि से नष्ट नहीं हुआ है ऐसे गिलोय के क्वाथ शक्कर मिलाकर पिलाने से अन्दम ही उपशम होता है ॥ ४७ ॥..
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