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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(३२३) हैं । हमेशा उस से लार निकलने लगती है और खुजली युक्त होता है । इसे उपजिव्हा रोग कहते हैं ॥ ६४॥
उपजिव्हा चिकित्सा. तमत्र निहालसवत्प्रसारये- । च्छिरोविरेकैः कवलग्रहस्सदा ॥ तथान पंचादशदंतमूलजान् । सलक्षणान् साधुचिकित्सितान्ब्रुवे ॥६५॥
'भावार्थः- उस उपजिविकाको जिह्वालसक रोगके समान ही औषधियोंसे बुरखना चाहिये एवं सदा शिरोविरोचन व कवल धारण द्वारा उपचार करना चाहिये । अब दंतमूलमें उत्पन्न होनेवाले पदंह प्रकारके रोगोंके लक्षण व चिकित्साके साथ वर्णन करेंगे ॥६५॥
सीतोद लक्षण व चिकित्सा. स्रवेदकस्मादिह दंतवेष्टतः । कफास्त्रदोषक्षुभितातिशोणितम् ॥ गदोत्र शीताद इति प्रकीर्तित- । स्तमसमीक्षैः कवलैरुपाचरेत् ॥६६॥
भावार्थ:-अकस्मात् कफ रक्तके प्रकोपसे मसूडोंसे खून निकलने लगता है उसे सीतोद रोग कहते हैं । उसे रक्तमोक्षण व कवलधारणसे उपचार करना चाहिये ॥६६॥
दंतपुप्पट लक्षण व चिकित्सा यदा तु वृत्तः श्वयथुः प्रजायते । सदंतमूलेषु स दंतपुप्पंटम् । कफासगुत्थं तमुपाचरेभिषक् । सदामपकक्रमतो विचक्षणः ॥६७।।
भावार्थ:-कफ व रक्त के उद्रेक से जब दंतमूलमें गोलाकार रूपमें सूजन होती है उसे दंतपुप्पट रोग कहते हैं । कुशल वैद्य को उचित है कि वह उसको आम पक्कादिक दशाको विचारकर चिकित्सा करें अर्थात् आमको विलयन, विदग्धको पाचन, व पक को शोधन रोपणसे चिकित्सा करें ।। ६७ ।।
दंतवेष्टलक्षण व चिकित्सा. सपूतिरक्तं स्रवतीह वेष्टतो । भवंति देताश्च चलास्समंसतः ॥ सदंतवेष्टो भवतीह नामतः । स्वदुष्टरक्तस्रवणैः प्रसाध्यते ॥ ६८॥ १ सीतोद इति पाठांतरं ॥ २ दंतपुष्पकमिति पाठांतरम् ।। ३ याह सूजन दो अथवा तीनों ही दांतों के मूल में होती है।
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