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कल्याणकास्के भावार्थः-महुआ, खिरनी, नीम, हिंगोट, पलाश, एरण्ड इनकी मज्जा [गिरी] कूट, जटामांसी, देवदारु, गुग्गुल, राल, अद्रक, सारिवा इत्यादि को [घी के साथ ] अच्छीतरह पीसकर कल्क बनावें । फिर उस कल्कको कपडे में लेपन कर उसे गोल वेष्टन करें । उस बत्तीको सुखावें । सुखाने के बाद उसे जलावें । जलाकर ठीक धुंचे के ऊपर मुख रखकर धूप देना चाहिये ॥ १०९ ॥ ११० ॥
मुखरोग नाशक धूप. तथैव दंती किणिही सहिंगुदी । सुरेंद्रकाप्टैः सरलैश्च धृपयेत् ॥ सगुग्गुलुध्यामकमांसिकागुरु- । प्रणीतसूक्ष्मामरिचैस्तथापरैः ॥ १११॥
भावार्थ:-उसी प्रकार दंती, चिरचिरा, हिंगोट, देवदारु, धूप सरल इनसे बनाई हुई बत्तिसे भी धूपन-प्रयोग करना चाहिये, इसी प्रकार गुग्गुल सुगंधि तृण (रोहिस सोधिया) जटामासी, सूक्ष्मजटामांसी, अगुरु, मिर्च इन औषधियोंसे एवं इसी प्रकारके अन्य औषधियोंसे भी धूपन विधि करनी चाहिये ॥ १११ ॥
मुखरोगनाशक योगांतर अयं हि धूपः कफवातरोगनुत् । घृतेन युक्तः सकलान् जयत्यपि ॥ सदैव जातीकुसुमांकुरान्वितः । कषायगोमूत्रगणो मुखामयान् ॥ ११२ ॥
भावार्थ:-यह धूप कफवातके विकारसे उत्पन्न मुखरोगों का नाश करता है। यदि घृतंसे युक्त करें तो सर्व मुग्वरोगीको भी जीतता है । सदा जाईका फल व अंकुर से युक्त कषाय रस व गोमूत्रा, मुखगत समस्त रोगोंको दूर करता है ॥११२॥
श्रृंगराजादि तैल. मुझंगराराजामलकाख्यया रसं । पृथक् पृथक् प्रस्थमिदं संतैलकम् । पयश्चतुःप्रस्थपलं च यष्टिकं । पचेदिदं नस्यमनेकरोगजित् ॥ ११३ ॥
भावार्थ:-भंगराज ( भांगरा ) का रस एक प्रस्थ (६४ तोला ) आंबले का रस एक प्रस्थ, तिलका तैल एक प्रस्थ, गायका दूध चार प्रस्थ, मुलैठी (कल्कार्थ) १६ तोला, इन सबको मिलाकर तैल सिद्ध करें। इस तैल के नस्य देनेसे मुखसम्बंधी अनेक रोग नष्ट होते हैं ॥ ११३ ॥
___ सहादितल. सहारिमंदामलकामयासनैः । कषायककै रजनीकटुत्रिकैः। विपकतैलं पयसा जयत्यलं । स नस्यगण्डूषविधानतो गदान् ॥११४॥
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जनाकडात्रकैः
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