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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(३३५)
भावार्थ:-रास्ना, अरिमेद ( दुर्गंध युक्त खर ) आमलक, हरड, विजयसार हलदी, त्रिकटु इनका कषाय व कल्क, दूध, इनके साथ पकाये हुए तैलको नस्य व गण्डूष विधानमें उपयोग करें तो वह अनेक मुखरोगोंको जीतता है ॥११४॥
सुरेंद्रकाष्टादि योग. सुरेंद्रकाष्ठं कुटजं सपाठां । सरोहिणीं चातिविषां सदंतिकां । पिबन समूत्रं धरणांशसीमतं । पृथक् पृथक्च्छे ष्पमुखामयान् जयत्।।११५
भावार्थ:-देवदारु, कूडाकी छाल, पाठा, कुटकी, अतिविपा, दंति ( जमालगोटे की जड ) इन औषवियोंको पृथक् पृथक २४ रत्ति प्रमाण गोमूत्रमें मिलाकर पीवे तो कफविकारस उत्पन्न मुखरोगोंका नाश होता है ॥ ११५ ॥
सर्व मुखरोग चिकिरसा संग्रह। किमुच्यते वक्त्रगतामयौषधं । कफानिलघ्नं सततं प्रयोजयेत् ॥ स नस्य गण्डूषविलेपसारण- । प्रधृपनोद्यत्कबलानि शास्त्रवित् ॥११६॥
भावार्थ:-मुखरोगके लिए औषधिको कहने की क्या जरूरत है । क्योंकि मुख में विशेषतया वात व कफसे रोग हुआ करते हैं । उनको वात व कफहर औषधि प्रयोगोंसे सदा चिकित्सा करें। शास्त्रज्ञ वैद्य नस्य, गण्डूष, विलेपन, सारण, धूपन, व कवलग्रहण इस उपायोंको भी काममें लेवें ॥ ११६ ॥
मुखरोगीको पथ्यभोजन | समुद्गयुषैः सघृतैस्सलावणैः खलैस्सयुषः कटुकौषधान्वितैः ॥ कषायतिक्ताधिकशाकसंयुतै- । रिहैकवारं लघु भोजनं भवेत् ॥११७
भावार्थ:-सुखरोगसे पीडित रोगीको, मुद्गयूष, घृत, लवण, खल, यूष, एवं कटुक औषधि इन से युक्त तथा कषाय व कडुआ शाकोंसे युक्त लघु भोजन दिनमें एक बार दना चाहेए ॥ ११७ ।।
मुखगत असाव्यरोग। ति प्रयत्नाकथिता मुखाययाः । पडुत्तराः पष्ठिरिहात्मसंख्यया ॥ तस्तु तेष्वोष्ठगता विवास्त्रिदोषमांसक्षतजोद्भवास्त्रयः ॥ ११८ ॥
१ ग्रंथांतरमें कुटजफल ।
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