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कल्याणकारके
काचाख्योप्यधिकृतनालिसज्ञिको ।
यो मलायी परिसहितश्च यापनीयः ॥२३३॥ भावार्थ:---पित्त से उत्पन्न हस्वजाति [ जात्य ] और जलस्राव, ये दो रोग असाध्य होते हैं । नीलिकाकाच, परिम्लायी ये दो रोग याप्य होते हैं ॥ २३३ ॥
पितजसाध्य रोग. स्यंदाख्योऽप्याभिहितस्तदाधिमंथः । शुक्त्यम्लाध्युषितविदग्धदृष्टिनाम्ना ।। धूमादिप्रकटितदर्शिना च सार्धे ।
साध्यास्ते षडपि च पिजा विकाराः ॥२३४॥ भावार्थ-पैत्तिकाभिष्यंद, पैतिकाधिमं, शुक्ति, अम्ला युषित, धूमदर्शी, पित्तविदग्धदृष्टि ये छह पैतिक रोग साध्य होते हैं ॥२३४॥
कफज असाध्य, साध्यरोग स्रावोऽयं कफजनितो ह्यसाध्यरूपो । याप्यः स्यात्कफकृत एव काचसंज्ञः ।। स्वंदस्तद्विहितनिजाधिमंथः। श्लेष्मादिग्रथितविदग्धदृष्टिनामा ॥ २३५ ॥ पोथक्या लगणयुताः क्रिमिप्रधाना ।
थि: स्यात् परियुताप्रवर्त्मपिष्टः॥ शुक्लार्मप्रवलकोपनाहयुक्ताः।
श्लेष्मोत्था दश च तथैक एव साध्यः ॥२३६।। भावार्थ--कफजसाच असाध्य होता है । कफसे उत्पन्न काच रोग याप्य है । कफाभिष्यंद, कफजाधिमथ, बलासप्रथित, श्लेष्मविदग्वदृष्टि, पोथकी लगण, क्रिमिग्रंथि, परिक्लिन्नवर्म, पिष्टक, शक्काम, कफोपनाह, ये ग्यारह कफात्पन्न रोग साध्य होते हैं ।। २३५.२३६ ॥
रक्तज असाध्य, याव्य, साध्य रोगलक्षण, रक्ताशी व्रणयुतशुरुमारितोऽ। सृक्नावोऽजकजातमसाध्यरूपरोगाः ॥
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