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(३५८)
कल्याणकारके भावार्थ:---उस दृष्टि के आश्रयभूत अर्थात् दृष्टि में होनेवाले बातादि दोषोंसे उत्पन्नः पटला को भेदन करने वाले १२ प्रकारके रोगों को नाम, लक्षण, साध्यासाध्य विचार व चिकित्साके कथनके साथ २ निरूपण करेंगे ।। २१० ॥
प्रथमपटलगतदोषलक्षण । यदा तु दोषाः प्रथमे व्यवस्थिताः । भवति दृष्टया पटले तदा नरः॥ न पश्यतीहाखिलवस्तु विर तृतं । विशिष्ट मरपाटतर स्वकष्टतः ॥२११॥
भावार्थ:- जब आखोंके प्रथम पटल में दांपाका प्रभाव होता है अर्थात् स्थित होते हैं तब मनुप्प सर्व पदार्थों को स्पष्टतया देखता नहीं है । बहुत कष्टसे अस्पष्टरूपसे वह भी बडे पदार्थो को देख सकता है ॥२११॥
___द्वितीयपटलगतदोपलक्षण. नरस्य दृष्टिः परिविव्हला भवेत् । सदैव बूचीसुधिर न पश्यति ॥ १. प्रयत्नतो वाप्यथ दोषसंचये । द्वितीयमेवं पटलं गते सति ।। २१२ ॥ .... भावार्थ:-दोषों के समूह, जव ( आंखके ) दूसरे पटल ( परदे ) को प्राप्त होते हैं तो मनुष्यकी दृष्टि विहल होती है और वह प्रयत्न करनेपर भी [ निगाह करके देखने पर भी ] हमेशा सुई के छिद्र को नहीं देखसकता है अर्थात् उसे दीखता नहीं. है ॥ २१२ ॥
तृतीयपटलगतदोवलक्षण. अधो न पश्यत्यथ चोर्धमीक्षते । तृतीयपेयं पटलं गतेऽखिलान् ।। स के शपाशान्यशकान्समाक्षिकान् । सजालकान् पश्यति दोषसंचये ॥२१३
भावार्थ:---आखके तृतीय पटल को, दोष समूह प्राप्त होने पर, उस मनुष्यको नीचके वरत नहीं दिखाई देते हैं। और ऊपर की वस्तु ते दिखाई देते हैं । वह सम्पूर्ण वस्तुवों को केशपाश, मशक (मच्छर) मख्खी एवं इसी प्रकारके अन्य जीवोंके रूपमें देखता
वक्तांध्य लक्षण. त्रिषु स्थितोऽल्पः पटलेषु दोषो । नरस्य नकाध्यसिंहावहत्यलम् ॥ दिवाकरेणानुगृहीतलोचनो । दिवा स. पश्येत् क फतुच्छभावतः॥२१४॥ भावार्थः --तानों पठलो में अपप्रमाणमें स्थित दोष [ का ] मनुष्य को
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