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वातरोगाधिकारः।
(१२७)
अर्दित का मसाध्य लक्षण व पक्षाघातकी संप्राप्ति व लक्षण | त्रिवर्षकृतवेपमानशिरसश्चिराङ्गाषिणो। निमेषराहतस्य चापि न च सिध्यतीहार्दितः ॥ रुधा च धमनीशरीरसकलार्धपक्षाश्रितान ।
प्रपथ पवनः करोति निभृतांगमज्ञाकृतम् ॥ १३ ॥ भावार्थ:-जिस अर्दित रोगी का शिर, बराबर तीन वर्ष से काम्प रहा हो, बहुत देरसे जिसका वचन निकलता हो, आंग्वे जिनकी बंद नहीं होतो हो ऐसे रोगीका अर्दित रोग असाध्य जानना चाहिये । वही वायु शरीर के सम्पूर्ण अर्थ भाग में आश्रित धमनियों को प्राप्तकर, और उनको रोक कर, (विशोषण कर) शरीरको कठिन बनाता है एवं स्पर्शज्ञानको नष्ट करता है ( जिस से शरीर के अर्थ भाग अर्कमण्य होता है) इस रोग को, पक्षवध पक्षाघात, व एकांगरो। भी कहते हैं ॥ १३ ॥
पक्षघातका कृच्छ्रसाध्य व असाध्यलक्षण । स केवलमरत्कृतस्तु भुवि कच्छ्रसाध्य स्मृतो। न सिध्यति च यः क्षताद्भवति पक्षघातः स्फुटं ।। स एव कफकारणाद्गुरुतरातिशोफावह-।
स्सपित्तरुधिरादपि प्रबलदाहमूर्छाधिकः ॥ १४ ॥ भावार्थ:-वह पक्षघात यदि केवल बातसे युक्त है तो उसे कठिनसाध्य समझना चाहिये । यदि क्षतसे ( जन्बम ) के कारण पक्षाघात होगया हो तो वह निश्चय से असाध्य है । वह यदि कफ से युक्त हो तो शरीरको भारी बनाता है । एवं शरीरमें सूजन आदि विकार उत्पन्न होते हैं । पित्त एवं रक्तसे युक्त हो तो शरीरमें अत्यधिक दाह व मुर्छा आदि उत्पन्न होते हैं ॥ १४ ॥
अपतानक व आक्षपक के अलाध्यलक्षण । तथैवमपतानकोऽप्यधिकशोणितातिस्रावात् । स्वगर्भपतनात्तथा प्रकटिताभिघातादपि ॥ न सिध्यति परित्यजेदथ भिषक्तमप्यातुर।
तथैवमभिघातजान स्वयमिहापि चाक्षेपकान ॥ १५ ॥ भावार्थ:-शरीर से अधिक रक्तके बह जानसे, गर्भच्युति होनेसे, एवं और कोई धक्का लगनेसे उत्पन्न अपतानक रोग भी असाध्य है। ऐसे अपतानकसे पीडित रोगीको एवं जखमसे उत्पन्न आक्षेपक रोगीको वैध असाध्य समझकर छोडे || १५ ।।
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