________________
महामयाधिकारः ।
गर्भिणी आदिके सुखकारक उपाय |
गर्भिणी प्रसवनी तदपत्यं । प्रोक्तवातहर भेषजमार्गः || संविनय सुखितामतियत्ना- । द्वालपोषणमपि प्रविदध्यात् ॥ ७५ ॥
भावार्थ:- इस प्रकार उपर्युक्त प्रकार वातहर औषधियोंके प्रयोगों द्वारा बहुत प्रयत्न से गर्भिणी, प्रसूता व बच्चेको सुखावस्था में पहुंचाना चाहिये । तदनंतर उस बालकका पोषण भी करना चाहिये || ७५ ॥
( २४७ )
बालरक्षणाधिकारः ।
बालकं बहुविधीषधरक्षा रक्षितं कृतसुमंगलकार्यम् ॥ यंत्रतंत्र मंत्रविधान। मैत्रितं परिचरेदपचारैः ॥ ७६ ॥ भावार्थ:-उस बालकको जातकर्म आदि मंगल कार्य करते हुए अनेक प्रका रकी औषधि व यंत्र, तंत्र, मंत्र आदि विधानों के द्वारा रक्षा करनी चाहिये ॥ ७६ ॥
शिशुसेव्यघृत |
गव्यमेव नवनतिघृतं वा । हेमचूर्णसहितं वचयात्र || पाययेच्छ्रिशुमिहाग्निबलेना । त्यल्पमल्पमधिकं च यथावत् ॥ ७७ ॥
भावार्थ:- गायका मख्खन व घी में सुवर्णभस्म व वच का चूर्ण मिलाकर बालके अमिलके अनुसार अल्पमात्रा आरम्भ कर थोडा २ बढाते हुए पिलाना चाहिये । जिससे आयुष्य, शरीर, कांति आदि वृद्धि होते हैं ॥ ७७ ॥
धात्री लक्षण |
दुग्धवत्कुशतर स्तनयुक्तां । शोधितामविहितामिह धात्री ||
गोत्रा कुशलिनीमपि कुर्या । दायुरर्धमतिबुद्धिकराये ॥ ७८ ॥
भावार्थ:- बालककी आयु व बुद्धिके लिए दूधवाले और कृश ( पतला ) स्तनोंसे संयुक्त परीक्षित ( दुष्टस्वभाव आदिसे रहित ) बालकके हितको चाहने वाली स्वगोत्रोत्पन्न कुशल ऐसी घाईको दूध पिलाना आदि बालकके उपचार के लिए रखनी
चाहिये ।। ७८ ।।
बालग्रहपरीक्षा |
बालकाकृतिशरीरसुचेां । संविलोक्य परिपृच्छ्यच धात्रीम् ॥ भूतवैकृतविशेषविकारा-: । नाकलय्य सकलं विदधीत ॥ ७९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org