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कल्याणकारके
हड्डी, सींग इत्यादि, तथा नानाप्रकार के दुष्टत्रण, गुल्म, अश्मरारी, मूढगर्भ इत्यादि सत्र शल्य कहलाते हैं। तात्पर्य यह है कि शल्य नाम कांटे का है। जो शल्य के समान दुःख देवें वह सभी शल्य कहलाते हैं !
१ अर्श आदि को जो जडसे छेदा जाता है वह छेदन कहलाता है।
२ जो विद्रधि जैसोंको फोडा जाता है वह भेदन कहलाता है । '. ३ जो खुरचा जाता है वह लेखन कहलाता है।
४ जो छोटे मुखवाले शस्रोंसे सिरा आदि वेध दिया जाता है वह वेधन कहलाता है।
५ जो शरीरगत शल्य, किस तरफ है, इत्यादि मालूम न पडनेपर शलाका से डूंढा जाता है वह एषण कहलाता है। .
६ जो शरीरगत शल्य अश्मरी आदिको बाहर निकाला जाता है वह आहरण कहलाता है।
७ जो विद्रधि आदि इणोंसे मवाद आदि बहाया जाता है वह विस्रावण कहलाता है। ८ उदर आदि चीरनेके बाद जो सूईयोंसे सीया जाता है वह सीवन कहलाता है ॥
शस्त्र-छुरी, चक्रतू , कैंची, आदि, जो छेदन आदि कामों में आते हैं ।
यंत्र शरीर में घुसे हुए, नाना प्रकार के शल्यों को पकड़के बाहर खींचने व देखने के लिये, अर्श, भगंदर आदि रोगोमें शस्त्र, क्षार, अग्नि कर्मों की योजना व शेष अंगोंकी (क्षार आदि के पतनसे ) रक्षा करने के लिये, एवं बस्ति के प्रयोग के लिये, उपाय भूत, जो वस्तु ( लायन फोर्सस, ड्रेसिंगफार्सप्स, ट्युवुलर, स्कूप इस आदि. आजकल प्रचलित ) विशेष है, वह यंत्र कहलाता है ।
बाह्मविद्रधि चिकित्सा. बहिरुपगतवृद्धौ विद्रधी दोषभेद- । क्रमयुतविधिनात्रामादिषु प्रोक्तमार्गः ॥ रुधिरपरिविमोक्षालेपबंधाद्यशेष-।
व्रणविहितविधानः शोधयेद्रोपयेच्च ।। ३२ ॥ भावार्थ:-विद्रधि यदि बाहिर हो तो दोषोंके अनुसार जो शोफके आम, विदग्ध, विपक्क अवस्थाओमें जो चिकित्सा बताई गई है वैसी चिकित्सा करें । रक्तमोक्षण, लेपन, बंधन आदि समस्त व्रण चिकित्सामें कहे गये, विधानोंसे उसका शोधन और रोपण करें ॥ ३२॥ .
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