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(१२९८)
कल्याणकारके
रक्तके प्रकोपसे, इंद्रविद्धाके समान, छोटी २ विडिकाओंसे संयुक्त कठिन ब लाल मण्डल ( चकत्ता ) होता है उसे गर्दभ कहते हैं ॥ ४१ ॥
पाषाणगर्दभ, जालकाली लक्षण... हनुगतवरसंधौ तद्वदेवातिशोफम् । परुषविषमपाषणाधिकं गर्दभाख्यम् ॥ तदुपपगतपाकं जालकालं विसर्प- ।
प्रतिममधिकपित्तोद्भतदाहज्वराच्यम् ॥ ४२ ॥ भावार्थ:-इसीप्रकार हनुकी संधि [ टोडी ] में [वात कफसे उत्पन्न ] अति कठिन व विषम जो बडा शोथ होता है उसे पाषाणगर्दभ कहते है। पित्तके उद्रेकसे उत्पन्न पाषाणगर्दभ आदिके समान जो नहीं पकती है विसर्पके समान इधर उधर फैलती है एवं दाह [ जलन ] बरसे युक्त होती है, ऐसी सूजनको जालकाली [ जालगर्दभ ] कहते हैं ॥ ४२ ॥
. पनसिका लक्षण. श्रवणपरिसमंतादुन्नतामुग्रशोफां । कफपवननिमित्तां वेदनोद्भुतदुःखां ॥ प्रबलपनसिकाख्यां साधयेदौषधैस्तां ।
प्रतिपदविहितस्तैः आमपकक्रमेण ॥ ४३ ॥ भावार्थ:--कफवात के विकारसे कानके चारों तरफ अत्यधिक सूजन होत. है और वह वेदनासे युक्त होती है उसे पनासका कहते हैं । उनको उनकी आम पक्क दशावोंको विचार करके तदवस्थायोग्य बार २ कहे हुए औषधियोंके प्रयोगसे उनकी चिकित्सा करनी चाहिये ॥४३॥
इरिवल्लिका लक्षण. . शिरसि समुपजातामुन्नतां वृत्तशोफां । कुपितसकलदोषोभ्दूतलिंगाधिवासाम् ॥ ज्वरयुतपरितापां तां विदित्वेरिवल्ली-।
- भुपशमनविशेषैः साधयेद्वालकानाम् ।। ४४ ॥ ... भावार्थ:-बालकोंके मस्तकमे ऊंची २ गोल २ सूजन होती हैं । और वह प्रकु- पित' समस्त [ तीनों ] दोषों के लक्षणों से युक्त होती है अर्थात् त्रिदोषोंसे उत्पन्न हैं और
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