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क्षुदरोगाधिकारः
(२८५)
भावार्थ:-तीदण व विषम दांतोंके रगडसे उत्पन्न उपदंशक्षत ( जखम) और अत्यंत सूजनसे युक्त हो तो उसका यथायोग्य टण्डा घृत, दूध आदि के प्रयोगसे बुद्धिमान वैद्य उपशमन करें एवं अत्यंत शीत औषधियोंको लेपन करें ॥ ६ ॥
यदुचितमाभिघाते जातशोफे विधानं । तदपि च कुरुते यत्नेन वंशाख्यशोफे ॥ व्रणविहित समस्तश्शोधनै रोपणैर-।
प्युपनहनविशेषेस्साधयेत्तत्कृतं च ॥ ७॥ भावार्थ:--वंश नामक शोथमें अभिवातसे उत्पन्न सूजनमें जो चिकित्सा कब बसलाया है उनको तथा व्रण प्रकरणमें कहे गये शोधन, रोपण, उपनाह (पुल्टिश) इत्यादिका प्रयोग करें ॥ ७ ॥
अथ शूकदोषाधिकारः । शूकरोग निदान व चिकित्सा. परुषविषमपत्रोट्टनं मेवृष्यः । करमथनविशेषादल्पयोनिप्रसंगात् ॥ अधिकृतबहुशूकाख्यामयाः स्युस्ततस्तान् ।
घृतबहुपरिषेकैः स्वेदनः स्वेदयेच्च ॥ ८ ॥ भावार्थः-मेद (लिंग) के बढने के लिये अनेक तरहके रूक्ष पत्तोंके घर्षणसे, हस्त मैथुनसे एवं अल्पयोनिमें मैथुनसेवन करनेसे उस शिश्नपर अनेक तरहकी फुनसियां पैदा होती हैं । उसे शूर्करोग कहते हैं। उसपर घृतका सिंचन करना चाहिये और स्खेदन औषधियोंसे वे न कराना चाहिये ॥ ८ ॥
... तिलमधुकादि कल्क। तिलमधुककलायाश्वत्थमुद्ः सुपिष्टैः। घृतगुडपयसाव्याभिश्रितैः शीतवगैः ।। कुपितरुधिरशांत्य संपपिष्य प्रयत्नात् ।
विदितसकलदोषप्रक्रमेणारभेत ॥ ९ ॥ भावार्थ:-तिल, ज्येष्ठमधुः [मुलैठी] मटर, अश्वत्थ, मूंग इनको अच्छीतरह पीस .कर घी, दूध व गुडके साथ मिलाये फिर शीतवर्ग औषधियों के साथ दूषित रक्तके शांतिके
१ यह अठारह प्रकारका होता है।
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