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महामयाधिकारः।
(२५५) भिन्न २ अर्शीकी भिन्न २ चिकित्सा। तत्र वातकफजान्गुदकीलान् । साधयेदधिकतीव्रतराग्नि-॥ क्षारपातविधिना तत उद्यत्- । क्षारतो रुधिरपित्तकृतानि ॥११२ ॥ स्थूलमूलकठिनातिमहान्तं । छेदनाग्निविधिना गुदकीलम् । . कोमलांकुरचयं प्रतिलेपै- । र्योजयेद्वलवतां बहुयोगैः ।। ११३ ॥
भावार्थ:-बात व कफसे उत्पन्न अर्शको क्षार कर्म व अग्नि कर्मसे, रक्त व पित्तोत्पन्न अर्शको क्षारकर्मसे एवं मूलमें स्थूल, कठिन व बडे अर्शको छेदन व अग्निकर्म से साधन करना चाहिए । जिसका अंकुर कोमल है रोगी भी बलवान है उसको अनेक प्रकारके लेपों अनेक प्रकारके औषधि योगों द्वारा उपशम करना चाहिए ॥११२।११३॥
अर्शन लेप । अर्कदुग्धहीरतालहरिद्रा- | चूर्णमिश्रितविलेपनमिष्टम् ॥ वज्रवृक्षपयसाग्निकगुजा- । सैंधवोज्वलनिशान्वितमन्यत् ॥ ११४ ॥
भावार्थ:-~आकके दूवमें हरताल हलदीके चूर्णको मिलाकर लेपन करें अथवा थोहरके दूध में चित्रक, धुंधची, सैंघानमक व हलदीके चूर्ण मिलाकर लेपन करें तो अर्श रोग उपशमनको प्राप्त होता है ॥ ११४ ॥
पिप्पलीलवणचित्रकगुंजा- कुष्टमर्कपयसा परिपिष्टम् । कुष्ठचित्रकसुधारुचकं गो- मूत्रपिष्ठमपरं गुदजानाम् ॥११५॥
भावार्थः-पीपल, सैंधानमक, चित्रक व घुबीको कूटकर अकौवेके दूधके साथ पीसें । उसे लेपन करें अथवा कूट, चित्राक, थोहर व काले नमकको कूटकर गोमूत्रके साथ पीसा हुआ लेपन भी उपयोगी है ॥ ११५ ॥
अश्वमारकविडंगसुदन्ती- चित्रमूलहरितालसुधार्फ ।। क्षीरसैंधवीवपक्कमथार्श- स्लैलमेव शमयदिहलेषात् ।। ११६ ॥
भावार्थ:-करनेर, वायविडंग, जमालगोटेकी जड, चित्रक, हरताल, थोहरका दूध अकौका दूध व सैंधानमकसे पका हुआ तेल अर्शपर लेपनके लिये उपयोगी है॥११६||
अार्श नाशक चूर्ण । यान्यदृश्यतररूपकदुनी- मानि तेषु विदधीत विधिज्ञः ॥ प्रातराग्निकहरीतकचूर्ण । भक्षणं पलशतं गुडयुक्तम् ॥ ११७॥
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