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कल्याणकारके
जालिनी लक्षण । समांसनाडीचयजालकावृता । महाशयायतिसतोदनान्विता ॥ मुस्निग्धसंस्रावि ससूक्ष्मरंध्रका । स्तब्धा सजालिन्यपि कीर्त्यते ततः॥
भावार्थ:-जो मांस व नाडीसमूह के जालेस आवृत हो, बडा हो, अत्यंत पाडा व तोदनसे युक्त हो, स्निग्य हो, जिससे स्राव होता हो, सूक्ष्मरंध्रांसे युक्त हो, स्तब्ध हो उसको जालिनी पिटक कहते हैं ॥ १४ ॥ .
- पुत्रिणी, कच्छपिका, मसूरिका लक्षण। समूक्ष्मकाभिः पिटकाभिरन्विता । प्रवक्ष्यते सा महती सपुत्रिणी। महासमूलातिघनार्तिसंयुता । सकच्छपापृष्ठनिभातितोदना ॥१५॥ सदापि संश्लक्ष्णगुणातिखेदना । निगद्यते कच्छपिकापि पण्डितैः । ममूरकाकारवरप्रमाणा मनाक् सतोदा च मसरिकोक्ता ॥१६॥
भावार्थ:----सूक्ष्मपिटक युक्त हो व बडी हो उसे पुत्रिणी कहते हैं। एवं मूलमें जो बडी हो, बडे भारी पांडासे युक्त हो, कछुवेक पीठ के समान आकारवाली हो, अति सोदनसे युक्त हो, चिकनी हो, अत्यंत खेद उत्पन्न करनेवाली हो उसे विद्वान् लोग कच्छपिका कहते हैं । मसूरके आकारसे युक्त व तोदनसे सहित पिटकको मसूरिका कहते
विदारी, विद्रधि, विनताका लक्षण । विदारिका कंदकठोरवृत्तता । विदारिका वेदनया समन्विता। सविद्रधिः पंचविधः प्रकल्पितः । समस्तदोषैरपि कारितैः पुरा ॥१७॥ सवर्णकः शीघ्रविदाहितायास्सविद्रधिश्वेद्विविधो मयोदितः। . उन्नम्य तीवदेहति त्वचं सा स्फोटेवृता कृष्णतरातिरक्ता ॥ १८ ॥ तृण्माहसंजर्तिकरी सदाहा भूयिष्ठकष्टाप्यलजी समुक्ता। पृष्ठोदरायन्यतरप्रसिद्धाधिस्थानभूता महती सतोदा ॥ १९ ॥ गाहातिरुक्क्लेदयुता सनीला । संकल्पितेयं विनता विराजिता ।। त्रिदोषनास्सर्वगुणास्समस्ता - त्रिदोषलक्ष्मांकितवर्णयुक्ता ॥ २० ॥ . भावार्थः---विदारिका कंदके समान कठोर व गोल जो रहती है उसे विदारिका करते हैं । समस्त दोषोंसे उत्पन्न, वेदनासे युक्त विद्रधि पांच प्रकारसे विभक्त है । फिर
१. भेदभा
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