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कल्याणकारके
भावार्थ:-बहुत जलसे भरा हुआ मशक जिस प्रकार हिलता है इसी प्रकार जलोदरसे पीडित व्यक्तिका विस्तृत पेट भी पता है व उसमें क्षोभ उत्पन्न होता है। यह जदोदरी कृश व बेहोश भी होता है। उसे प्यास तो आधेक लगती है। उसे भोजन करनेकी विशेष इच्छा नहीं रहती है ॥ १३७॥ .
उदररोग साधारण लक्षण । सदाहमूर्योदरपूरणाग्नि । मरुत्पुरीपातिविरोधनानि ॥ सशोफकायोगनिपीडनानि । भवंति सर्वाणि महोदराणि ॥ १९८॥ - भावार्थ:---सर्व महोदर रोगोमें दाह, मूर्छा, पेट भरा हुआ रहना, अग्निमांच, वातावरोध, मलावरोध, सूजन, कृशता, व शरीरमें दर्द आदि.निकार होते हैं ॥१३॥
असाध्योदर। जलोदराण्येव भवंति सर्वा-ण्यसाध्यरूपाण्यवसानकाले । वदाभिषक्तानि विवर्जयेत्तत् । प्रबद्धसंस्राव्युदराीण चापि ॥१३९॥
भावार्थ:--वृद्धावस्थामें जलोदर हो तो उसे असाध्य समझना चाहिये एवं बद्धो दर स्रावी उदरको भी समझना चाहिये । वैद्यको उचित है कि वह ऐसे रोगियोंकी चिकित्सा नहीं करें ॥ १३२॥
कृच्छ्रसाध्योदर । अथावशिष्टानि महोदराणि । सकृच्छ्रसाध्यानि भवति वानि । भिषक्प्रतिक्रम्य यथानुरूपं । चिकित्सितं तत्र करोति नित्यम् ॥ १४१ ॥
भावार्थ:-बाकीके महोदर रोग कष्टसाध्य होते हैं । यदि. वैद्य कुशल क्रियावों से प्रतिनित्य अनुकूल चिकित्सा करें तो वे कष्टसे अच्छे होते हैं. म १४०॥
भैषजशस्त्रसाध्योदरों के पृथक्करण । तदर्धमप्यष्टमहोदरेषु । वरौषधस्साध्यमथापरार्धम् ॥ .. सशस्त्रसाध्यं सकलानिकालाद्भवंति शस्त्रौषधसाधनानि ॥ ११ ॥
भावार्थः--उपर्युक्त आठ महोदर रोगोमें आदि के चार ( यात पित्त, कफ, व सनियत इन से उत्पन्न ) तो उत्तम औषधियों से साध्य हो सकते हैं । बाकीके चार शत्रकर्म से ठाक होते हैं। बहुतकाल बीतनेपर सर्प ही महोदर शख औषधियोंसे साध्य होते हैं ॥ १४२॥
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