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कल्याणकारके TREE भावार्थ:-हलदीको अच्छीतरह पीसकर आंवले के रस या काढेमें मिलावे । फिर उसे एक धूप आदि से संस्कृत घडेमें डालकर उसका मुह अच्छी तरह बांधे। फिर धानसे भरे हुए, गढ़े में । एक महिनेतका रखें । फिर वहां अच्छीतरह संस्कृत होनेके बाद निकालकर ग्रमहीको सेवन करावें तो प्रमेह रोग दूर हो जाता है ॥ ३४॥
निशादिकाथ। निशां समुस्तात्रिफलां सुरेधनम् । विपच्य निष्काथमिह प्रयत्नतः। पपाय नित्यं कफमेहमागम- प्रणीनमार्गाद्विजितेंद्रियो जयेत् ॥ ३५ ॥
भावार्थः . जिसने आगमोक्त मार्गसे, इन्द्रियोंको जीत लिया है ऐसे प्रमेह रोगीको हलदी, नागरमोथा, त्रिफला, देवदारु इनसे बनाये हुए कपायको सदा पिलाकर कफप्रमेहको जीतना चाहिये ॥ ३५ ॥
चंदनादि क्वाथ। 'मचंदनंद्राशनतिंदुकद्रुमैः । क्षरत्पयोवृक्षगणैः फलत्रयैः । कृतं कषायं घनकल्कमिश्रितं स पाययेत्पत्तिकमेहजातकान् ॥ ३६ ॥
भावार्थ:----चंदन, जायफल, इंद्र, असन, तेंदुवृक्ष, पंच क्षीरीवृक्ष [ वड, गूलर, पीपल, पाखर, शिरीष ] त्रिफला इनसे बनाये हुए कषायमें नागरमोथाका कल्क मिलाकर पिलानेसे पैत्तिक प्रमेह दूर होता है ॥ ३६ ।।
कपित्यादि क्वाथ । कपित्थीवल्वासनधावनीनिशा । हरीतकाक्षामलकार्जुनांघ्रिपः । श्रितं कषायं प्रपिबेत् जितेंद्रियो। जयेत्प्रमेहानखिलानुपद्रवैः ॥ ३७ ॥
भावार्थ-कैथ, बेल, विजयसार, पिठवन, हलदी, हरडा, बहेडा, आंवला, और अर्जुनवृक्ष की छालसे बनाये हुए कपायको पीनेसे जितेंद्रिय रोगी प्रमेहरोगको उपद्धके साथ २ जीत लेता है ।। ३७ ।।.
खर आदिके मलोपयोग। रखरोष्ट्रगोमाहिषवाजिनां शक- द्रसेन संमिश्रितपिष्टभक्षणः ॥ . तथैव तद्भस्मविगलितोदक- प्रपानभोजैर्जयति प्रमेहवान् ॥ ३८ ॥
भावार्थ:---गधा, ऊंठ, गाय, भैंस, घोडा, इनके मलरससे मिश्रित शालि गेंहू आदि के आटे को खानेसे; एवं उसी मलको जलाकर बनाये हुए भस्मसे छने हुए जलको पानं भोजन में उपयोग करनेपर प्रमेह रोग दूर होता है ।। ३८॥
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