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(१७०)
कल्याणकारके
लवी तनुः प्रकृतिमूत्रमलप्रवृति- ।
मैदज्वरश्शिथिलकुक्षिरपीह पके ॥ ६७॥ भावार्थ:----भार्डी, फिला, ( हरड वहेडा आंवला ) त्रिकटु [ सोंठ मिरच, पीपल, इनसे पकाया गया पानीको अर्थात् काढा पीनेसे कफज्वरका पाचन होता है। परके पाचन होनेपर शरीर हल्का, मल मत्रोंकी म्वाभाविक प्रवृत्ति, मंदज्वर, पेट शिथिल होजाता है ॥ ६७ ॥
वात व पित्त पकवर चिकित्सा। पकज्वरं समभिवीक्ष्य यथानुरूपं । स्निग्धैर्विरेचनगणरथवा निरूहैः ।। संयोजयेत्समनवातक तज्वरातः ।
पित्तज्वरे वमनशीतविरंचनैश्च ॥ ६८ ।। भावार्थ:---वर पकजानेपर यदि वह पीडायुक्त वातवर हो तो उसे यथायोग्य नेह [ एरण्ड तेल आदि ] विरेचन अथवा निम हबस्ति देनी चाहिये, यदि पित्तज्वर हो तो यथायोग्य शीत वमन, वा विरेचनसे उपशम करना चाहिये ॥ ६८ ॥
पक्कलमज्वर चिकित्सा। श्लेष्मज्वरे वमनमिष्टमरिष्टतोयैः । संपिष्टसैंधववचामदनप्रभूतैः ॥ . नस्यांजनेष्टकटुमेषजसद्विरेक-।
गण्डूपयूषखलतिक्तगणः प्रयोज्यः ।। ६९ ॥ भावार्थ:-कफञ्चरमें नीम कषायमें सैंधानमक, बचा, मेनफल इनका कल्क डालकर वमन देना चाहिये और कट औषधीयों द्वारा नस्य, अंजन, विरेचन तथा तिक्तगणौषधियों द्वारा कवलवारण ( कुरला ) कराना, व यूष देना चाहिये ।। ६९ ॥
लंघन आदिके लिये पात्रापात्र रोगी तत्राल्पदोषकृतलवालवृद... । स्त्रीणां क्रिया भवति संशमनप्रयोगः॥ तीतोपवासमलशोधनसिद्धार्ग- ।
संभावयेदधिकसत्वलान्ज्वरातन ॥ ७० ॥ भाषा:-पदि दोषोंका उद्रेक अप हो, वृद्ध हो, स्त्री हो, तो उनकी चिकित्सा शमन प्रयोगके द्वारा करनी चाहिये । इससे विपरीत अधिक बलधाले व्यरीको तीन लंघन, उपर्युक्त घनन विरेचनादिसे चिकित्सा करना चाहिये ।। ७० ॥
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