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(१७८ )
कल्याणकारके
कल् पिवेदशिशिरेण जलेन शुंठी-।
मेकां तथा कफकृताम तातिसारे ।। ९४ ॥ भावार्थ:--- श्लेष्मातिमार के आम अवस्था दारू हलदा, हलदी, त्रिकटुक ( सोंठ मिरच, पीपल, ) नागरमोथा, चित्रक इनके वा पाठा, अजवाईन, मिरच, अविला, व हरडा इनके क-कको गरम जल में मिलाकर पीना चाहिये अथवा शुंठीको ही पानीक साथ पीसकर पीना चाहिये ॥९५ ॥
पक्कातिसारमें आम्रास्थ्यादि चूर्ण । आम्रास्थिलोधमधुकं तिलपकाख्यं । सद्धातकीकुसमशाल्मालेबेष्टकं च ॥ विल्वप्रियंगुकुट मातिविपासमंगाः ।
पकातिसारशमनं दधितायीताः ।। ९५ ॥ भावार्थ:--आमकी गुठली, लोधा, मुलैठी, तिल, पद्माख, धाईके फूल, सेमलके गोंद, बेली गुदा, प्रियंगु ( फूलप्रियंगु) कुटज की छाल अतीस मंजीठ इनको चूर्णकर दहीके तोडके साथ पीसे पकःतिमार शमन होता है ॥ ९५ ॥
स्वगादिपुटपाक। त्वदीर्घवृतकुटजाम्रकदंबजांबू-। वृक्षोद्भवा बहुलतण्डुलतोयपिष्टाः ।। रंभादलेन परिष्ट्य पृटेन दग्धा।
निष्पीडिता गलति रक्तरसं सुगंधिम् ॥ ९६ ॥ भावार्थ:---दालचिनी, अग्लु, कुटज, आम, कदंब, जामुन वृक्षोंकी छाल को चावल की माण्डके साथ पीसकर केलेके पत्तेसे लपेटकर पुटपाक विधिसे पकाना चाहिये । फिर उसो निचोडनेपर उससे सुगंध लाल रस निकलता है ॥ ९६ ॥
तं शीतलं मधुककल्कयुतं प्रपेय । कुक्ष्यामयं जयति मंझुतरं मनुष्यः ॥ अम्बष्टिकासरसदाडिम तिंदुकं वा ।
तके विपाच्य परिपीतमपीह सद्यः ॥ ९७ ॥ भावार्थ:-उस्. शीतल रसमें मुलैठीका कल्क मिलाकर पीनेसे सर्व अतिसार रोग दूर होते हैं । अथवा अंबाडा, उत्तम दाडिम, तेंदु, इनको छाछमें पकाकर पीनेसे भी अतिसार रोगका उपशम होता है ॥ ९७ ॥ ...
१ अंबठिकाका अर्थ पाठा ( पहाडल ) भी होता है। .
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