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( १८८ )
कल्याणकारके
भावार्थ:- कुंदुरु, नीम, लवंग, मुलैठी, सहदेवी, ( वृक्ष ) गंगेरन विदारीकंद, काकोली, वृश्चिकाली, रसोत, महवेका फूल, खस, आम्र, केला, नागरमोथा, सुगंधवाला, कमल, जलबेत, चंदन, इलायची, मंजिष्ठा, वट, अश्वत्थ, नीलकमल श्वेतकमल, इन पदार्थोके प्रयोग से पित्तका शमन होता है ॥ २० ॥
पित्तन्न औषधियों के समुच्चय ।
यत्स्निग्धं यच्च शीतं यदपि च मधुरं यत्कषाय सुतिक्तं । यत्साक्षात्पिच्छिलं यन्मृदुतरमधिकं यद्गुरुद्रव्यमुक्तम् ॥ तत्तत्पित्तघ्नमुक्तं रसगुणविधिना सम्यगास्वाद्य सबै । भोज्याभ्यंग प्रलेपप्रचुरतरपरीषेकनस्येषु योज्यम् ॥ २१ ॥
भावार्थ: जो जो पदार्थ स्निग्ध हैं, शीत हैं, मधुर है, कपायला है, तीखा है, चिकना है, मृदुतर है, गुरु है यह सब पित्तको उपशमन करनेवाले हैं । इसप्रकार रस व गुणोंको अच्छी तरह जानकर भोजन, अभ्यंग, लेपन, सेक, व नस्योमें प्रयोग करना चाहिये ॥ २१ ॥
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गादि चूर्ण |
त्वक्चैला पिप्पलीका मधुरतरतुगा शर्कराचातिशुक्ला | याथासंख्यक्रमेण द्विगुणगुणयुता चूर्णितं सर्वमेतत् ॥ व्यामिश्रं भक्षयित्वा जयति नरवरो रक्तपित्तक्षयासृ- । तृष्णावासीरुहिकाज्वरमदकसनारोच कात्यंतदाहान् ॥ २२ ॥
भावार्थ:- दालचीनी १ भाग, इलायची २ भाग, पीपल ४ भाग, बंशलोचन
८ भाग, शक्कर १६ भाग प्रमाण लेकर सुखाकर चूर्ण करें। फिर सबको मिलाकर खानेसे यह मनुष्य रक्तपित्त, क्षय, रक्त तृष्णा, श्वास, हिचकी, ज्वर, मंद, खांसी, अरुचि व अत्यंत दाह आदि अनेक रोगोंको जीतलेता है ॥ २२ ॥
दोषोंके उपसंहार |
एवं दोषत्रयाणामभिहितमखिलं संविधानस्वरूपं । श्लोकैः स्तोकैर्यथोक्तैरधिकृतमधिगम्यामयानप्रमेयान् ॥ तत्तत्सर्व नियुज्य प्रशमयतु भिषग्दोषभेदानुभेद - । व्यामिश्राधिक्ययुक्त्या तदनुगुणलसद्भेषजानां प्रयोगैः ॥ २३ ॥
इसे व्यवहारमें रातोपलादि चूर्णके नामसे कहते हैं ।
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