________________
कफरोगाधिकारः।
(१८७)
भावार्थ:-जो पदार्थ कडुआ है, रूक्ष है, चरपरा है, कषायाला है, शुष्क है, क्षार है, तदिण है, विशद है, लघु व उष्ण है. ये सा पदार्थ कफनाशक हैं। उन सर्व ‘पदार्थोके रस व गुण बार-२ अच्छीतरह जानकर एवं गोपीयोंके दो पक्रामका भी अभीतरह जानकर उनके हितके लिये उन पदार्टीको भोजनादिमें प्रयोग करना चाहिये ।।१७
वातनाशक गण ।
एरंण्डौ द्वे बृहत्या, वरणकनृपवृक्षाग्निमंथाग्निशिग्रु- । ख्याताकोलकतकोयमरतरुमगुराख्य टुटूकवृक्षाः ।। मूवाकोरंटपलुिस्नुहियुततिलकास्तित्वकाः केंबुकाख्याः ।
वर्षाभूपाटलीकाः पवनकृतरुजाः शांतिमांपादयंति ॥ १८ ॥ भावार्थ:--लाल व सफेद एरण्ड, [ छोटी बडी ] दोनों कटेली, वरना, आमलतास, अगेथु, चित्रकका जड, सेंजन, अकौवा, सफेद अकौवा की छाल, पाडल, तारी देवदारु, लटजीरा, टेंटु, मूर्वा, पीयावास, पीलु, सेहुण्ड, मरूआ, लोध, पतंग, पुनर्नवा ये सब वात विकारोंको उपशम करनेवाले हैं ॥ १८ ॥
वातन्ने औषधियोंके समुच्चयन । यत्तीक्ष्णं स्तिग्धमुष्णं लवणमतिगुरुद्रव्यमत्यम्लयुक्तं । यत्सम्यक्पिच्छिलं यन्मधुरकटुकतिक्तादिभेदस्वभावम् ।। तत्तद्वातघ्नमुक्तं रसगुणमधिगम्यातुरारोग्यहेतोः ।
पानाभ्यंगोपनाहाहृतियुतपरिषेकावगाहेषु योज्यं ॥ १९ ॥ भावार्थ:-जो जो पदार्थ तीक्ष्ण है, स्निग्ध है, उष्ण है, खारा है, अयंत गुरु है, खट्टा है, पिच्छिल [ लिबलिवाहट ] है, मधुर है, चरपरा है, कडुआ आदि स्वभावोंसे युक्त वै वह बातविकारको नाश करनेवाला है । पदार्थों के रस व गुण को समझकर रोगियोंके हित के लिये उन पदार्थोंको पान, अभ्यंग, पुल्टिष, आहार, सेक, अवगाहन, आदि क्रियावों में प्रयोग करना चाहिये ॥ १९॥
पित्तनाशक गण। बिंबीनिंबेंद्रपुष्षीमधुकससहविश्वादिदेवीविदारी । काकोलीबृश्चिकाल्यंजनकमधुकपुष्पैरुशीराम्रसारैः ।। जबूरंभाम्बुदांब्बंम्बुजवरनिचुलैश्चंदनैलासमंगै- । यग्रोधाश्वस्थवृक्षैः कुमुदकुवलयः पित्तमायाति शांतिम् ।। २० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org