________________
धान्यादिगुणागुणविचार |
वंशाग्र आदि अंकुरशाकगुण ।
वंशाग्राणि शतावरीशशशिरावेत्राग्रवज्रीलता । शेवालीवरकाकनाससहिताः माकुराः सर्वदा ॥ शीताः श्लेष्मकरातिवृष्यगुरुकाः पित्तमशांतिप्रदाः । रक्तोष्मापहरा वर्गितमलाः किंचिन्मरुत्कोपनाः || ३० ॥
I
भावार्थ:-वांत, शतावर, गुर्च, बेंत, हडजुडी, सूक्ष्म जटामांसी, काकनासा [ कडआटोंटी ] मारिषशाक [ मरसा ] आदिके कोपल शीत हैं कफोत्पादक हैं । कामोदीपक हैं । पचन में भारी हैं पित्त शमन करने वाले हैं । रक्तके गर्मीको दूर करनेवाले हैं मल को साफ करनेवाले हैं साथ में जरा बातको कोपन करने वाले हैं ॥ ३० ॥ जीवंती आदि शाकगुण
( ६१ )
जीवंती तरुणी बृहच्छगलिका वृक्षादनी पंजिका । चुचुः कुन्डलता च विवसहिताः सांग्राहिका वातलाः । वाष्पोत्पादकपालकद्वयवहा जीवंतिका श्लेष्मला । चिल्लीवास्तुकतण्डुलीयकयुताः पित्ते हिता निर्मलाः ॥ ३१ ॥
भावार्थ:- जीवतीलता धीकुवार विधारा, वांदा, मंजिका, कुंदलता चंचुं (चेवुना)
कुंदुरु ये मलको बांधने वाले और बातोपादक हैं । मरसा, दो प्रकार के पालक, वडा, जीवंती इतने शाक कफ प्रकोप करने वाले हैं । चिल्ली बथुआ, चौलाई, ये पित्त में हितकर है ॥ ३१ ॥
I
Jain Education International
शार्केष्ट्रादि शाकगुण
शांfिष्टा सपटोलपानिकचरी काकादिमाचीलता । मण्डूक्या सह सप्ताद्रवणिका छिन्नोद्भवा पुत्रिणी । निवाद्यः सकिराततिक्तझरसी श्वेता पुनर्भूस्सदा । पित्तश्लेष्म हराः क्रिमिप्रशमनास्त्वग्दोषनिर्मूलनाः ॥ ३२ ॥
भावार्थ:-- बडीकरंज परवल, जलकाचरी, मकोय मालकांगनी, ब्राह्मी, सातला,
( थूहर का भेद ) द्रवणिका, गुडूचि, पुत्रिणी ( बंदा बदां ) नीम, चिरायता चीनी अथवा केनावृक्ष, सफेद पुनर्नवा, आदि पित्त और कफ का दूर करने वाले हैं, क्रिमिरोग को, उपशमन करने वाले हैं, एवं चर्मगत रोगोंको दूर करने वाले हैं ॥ ३२ ॥
१ खनामख्यात पुष्पवृक्षे । २ पर्याय- चिंचा चचु चेंचुकी दीर्घपत्रा सतिक्तक आदि । ३ गंवरास्नायां ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org