________________ (12) कल्याणकारके रिष्ट सूचकदूतलक्षण / हीनाधिकातिकृशकृष्णविरूक्षितांग: सव्याधितः स्वयमथायुधदण्डहस्तः संध्यासु साश्रुनयनो भयवेपमानो दूतो भवेदतितरां यमदूतकल्पः॥ 33 // अश्वैः खरै रथवरैः करभैः रथान्यैः प्राप्तः सदा भवति दूतगणोऽतिनिंद्यः यो वा छिनत्ति तृणमग्रगतो भिनत्ति काष्ठानि लोष्ठमथवेष्ठकमिष्टकं वा // 34 // एवंविधं सपदि दूतगतं च रिष्टं दृष्ट्वातुरस्य मरणेकनिमित्तहेतुम् तं वर्जयेदिह भिषग्बिदितार्थसूत्रः [शुभदूतलक्षण / ] सौम्यः शुभाय शुचिवस्त्रयुतः स्वजातिः // 35 // भावार्थ:--वैद्यको बुलानेकेलिए अत्यंत कृश, हीन वा अधिक काला, रूखा शरीरवाला, एवं बीमार दूत आगया हो, जिसके हाथमें तलवार आदि आयुध या दण्ड हों, संध्याकालमें रोते हुए एवं डरसे कंपते हुए आरहा हो उस दूतको रोगीके लिए यम दूतके समान समझना चाहिए। जो दूत घोडा, गधा, हाथी, रथ आदि वाहनोंपर चढकर वैद्यको बुलानेकेलिए आया हो वह भी निंदनीय है / एवं च जो दूत सामने रहनेवाले घास वगैरेको तोडते हुए, एयं लकड़ी, मट्टीका ढेला, पथ्थर ईंठ वगैरहको फोडते हुए आरहा हो वह भी निंद्य है / इस प्रकारके दूतलक्षणगत मरणचिन्हको जानकर रोगीका मरण होगा ऐसा निश्चय करें / तदनंतर सर्वशास्त्रंविशारद वैद्य उक्त रोगीकी चिकित्सा न करें। शांत, निर्मलवस्त्रयुक्त रोगीके समानजातियुक्त दूतका आना शुभसूनक है // 33 // 34 // 35 // अशुभशकुन / उद्वेगसंक्षवथुलग्ननिराधशद्धप्रस्पद्धिसंस्खलितरोषमहोपतापाः ग्राामाभिघातकलहानिसमुद्भवाद्याः वैद्यैः प्रयाणसमये खलु वर्जनीयाः // 36 // भावार्थ-वैद्य रोगांके घर जानेके लिये जब निकलें तब उद्वेग, छींक, निरोध (बांधो, रोको, बन्दकरो आदि) ऐसे विरुद्ध शद्रोंको सुनना स्पर्धा, स्खलन, क्रोध, महासंताप, ग्राममें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org