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२५. संजयज्झयणं
सूत्र
१. जीव- चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य संजयाई परूवणं
प. जीवा णं भंते! किं संजया, असंजया, संजयासंजया, नोसंजय नो असंजय नोसंजया संजया ?
उ. गोयमा ! जीवा णं संजया वि, असंजया वि, संजयासंजया वि नोसंजय-नोअसंजय नोसंजयासंजया वि।
"
.
प. दं. १ नेरइया णं भते कि संजया जाब नोसंजय नो असंजय-नोसंजयासंजया ?
उ. गोयमा ! नेरइया नो संजया, असंजया, नो संजयासंजया, नो नोसंजय नो असंजय, नोसंजयासंजया ।
दं. २- १९. एवं जाव चउरिंदिया,
प. दं. २०. पंचेदियतिरिक्खजोणिया णं भंते । किं संजया जाब नोसंजय नो असंजय नोसंजयाजया?
उ. गोवमा ! पंचेदियतिरिक्खजोणिया नो संजया, असंजया वि, संजयासंजया वि, नो नोसंजय, नोअसंजय, नोसंजयाजया
प. दं. २१. मणुस्सा णं भंते ! किं संजया जाव नोसंजय नोअसंजय, नोसंजयासंजया ?
उ. गोयमा ! मणुस्सा संजया वि, असंजया वि, संजयासंजया वि नो नोसंजय - नो असंजय, नोसंजयासंजया,
द. २२ २४. वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया ।
प. सिद्धा णं भंते ! कि संजया जाब नोसंजय नो असंजय नोसंजयासंगया ?
उ. गोयमा ! सिद्धा नो संजया, नो असंजया, नो संजया संजया, नोसंजय नोअसंजय नोसंजयासंजया,
संजय असंजयमीसगाय, जीवा तहेव मणुया य संजयरहिया तिरिया, सेसा असंजया होति ॥
- पण्ण. प. ३२, सु. १९७४-८०
२. संजयाईणं कायट्ठिई परूवणं
प. संजए णं भंते! संजए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं,
उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडि ।
प. असंजए णं भते ! असंजए ति कालओ केवचिर होइ ?
उ. गोयमा ! असंजए तिविहे पण्णते, तं जहा
१. अणाईए वा अपज्जवसिए,
द्रव्यानुयोग - (२)
२५. संयत - अध्ययन
सूत्र
१. जीव- चौवीसदंडकों और सिद्धों में संयतादि का प्ररूपणप्र. भंते! जीव क्या संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत
होते हैं, अथवा नोसंयत-नो असंयत, नोसंयतासंयत होते हैं ? उ. गौतम ! जीव संयत भी होते हैं, असंयत भी होते हैं, संयतासंयत भी होते हैं और नोसंयत-नोअसंयत, नोसंयतासंयत भी होते हैं।
प्र. दं. १. भंते ! नैरयिक क्या संयत होते हैं यावत् नोसंयत नोअसंयत, नोसंयतासंयत होते हैं ?
उ. गौतम ! नैरयिक संयत नहीं होते हैं, न संयतासंयत होते हैं। और न नोसंयत-नो असंयत-नोसंयतासंयत होते हैं, किन्तु असंयत होते हैं।
दं. २- १९. इसी प्रकार असुरकुमारादि से चतुरिन्द्रियों पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. दं. २०. भंते ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक क्या संयत होते हैं। यावत् नोसंयत-नोअसंयत, नोसंयतासंयत होते हैं ?
उ. गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक न तो संयत होते हैं और न ही नोसंयत-नो असंयत, नोसंयतासंयत होते हैं, किन्तु वे असंयत भी होते हैं और संयतासंयत भी होते हैं।
प्र. दं. २१. भंते ! मनुष्य संयत होते हैं यावत् नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत होते हैं ?
उ. गौतम ! मनुष्य संयत भी होते हैं, असंयत भी होते हैं, संयतासंयत भी होते हैं, किन्तु नोसंयत नोअसंयत, नोसंयतासंयत नहीं होते हैं।
दं. २२- २४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
प्र. भंते! सिद्ध क्या संबत होते हैं यावत् नोसंयत-नो असंयत- नो संयतासंयत होते हैं ?
उ. गौतम ! सिद्ध न तो संयत होते हैं, न असंयत होते हैं और न ही संयतासंयत्त होते हैं किन्तु नोसंयत नोअसंयत, नोसंयतासंयत होते हैं।
जीव और मनुष्य संयत, असंयत और संपतासंयत तीनों प्रकार के होते है। तिर्यञ्च संयत नहीं होते तथा शेष सभी असंयत होते हैं।
२. संयत आदि की कायस्थिति का प्ररूपण
प्र. भंते! संयत संयतरूप में कितने काल तक रहता है ?
उ.
गौतम ! ( वह) जघन्य एक समय,
उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक संयतरूप में रहता है।
भंते! असंयत असंयतरूप में कितने काल तक रहता है ?
प्र.
उ. गौतम ! असंयत तीन प्रकार के कहे गये हैं,
१. अनादि अपर्यवसित,
यथा